अवधि पूरा होने पर भी कैसे बने बैठे हैं सचिव
सुपौल: प्रारंभिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों ने भले ही स्कूल छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई में मशगूल
सुपौल: प्रारंभिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों ने भले ही स्कूल छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई में मशगूल हो गए। परन्तु विद्यालयों में सचिव बने उनके माता या पिता आज भी सचिव के रूप में कार्यरत हैं। ऐसे में व्यवस्था पर सवाल उठ रहा है कि विभाग ऐसे सचिवों को उनके पदों पर क्यों बरकरार रखे हुए है। वैसे जिला कार्यक्रम पदाधिकारी सर्व शिक्षा अभियान गिरीश कुमार बताते हैं कि जिन शिक्षा समितियों ने अपनी अवधि पूरी कर ली है उनके गठन का आदेश दे दिया गया है। लेकिन सवाल उठता है कि जिन शिक्षा समितियों के सचिव के बच्चे स्कूल पास कर गए हैं वे कैसे अपने पद पर बने हुए हैं। सूत्रों की मानें तो जिले के दर्जनों स्कूलों में यह व्यवस्था बरकरार है। बताया जाता है कि जिन बच्चों के आधार पर सचिव की सदस्यता मिली और उनके बच्चे पढ़ाई पूरी कर स्कूल से चले गए बावजूद सचिव अभी तक बने हुए हैं। जबकि विभागीय नियमानुसार बच्चों के स्कूल से चले जाने के बाद संबंधित अभिभावकों की शिक्षा समिति में सदस्यता खत्म हो जानी चाहिए।
क्या है सचिव की भूमिका
प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में गठित विद्यालय शिक्षा समिति के सचिव व हेडमास्टर के संयुक्त हस्ताक्षर से ही विद्यालयों में पैसों की निकासी होती है। वह चाहे किसी योजना से संबंधित पैसा हो या एमडीएम का। उसकी निकासी के लिए हेडमास्टर के साथ-साथ सचिव का हस्ताक्षर जरूरी होता है। ऐसे में विद्यालयों में सचिव का महत्व बढ़ जाता है।
क्या है चयन का प्रावधान
नियमानुकूल पोषक क्षेत्र के बच्चों के अभिभावकों को विद्यालय शिक्षा समिति का सदस्य मनोनीत किया जाता है। यह प्रक्रिया आम सभा के माध्यम से सर्वसम्मति से पूरी की जाती है। उसके बाद उन्हीं सदस्यों के बीच से सचिव का मनोनयन होता है। अगर सर्वसम्मति नहीं बनी तो उस परिस्थिति में वो¨टग कराई जाती है। जिसका कार्यकाल तीन वर्षो के लिए होता है। यदि तीन वर्ष के अंदर समिति के सदस्यों का बच्चा विद्यालय की पढ़ाई पूरी कर लेता है तो वैसे सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो जाती है। बावजूद नियम को दरकिनार कर कई ऐसे अभिभावक सचिव बने बैठे हैं। जिनके बच्चों ने स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली है।
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जिन स्कूलों की समिति का कार्यकाल पूरा हो चुका है। वैसे विद्यालयों में समिति गठन का आदेश दिया गया है। जिन समिति सदस्य के बच्चे विद्यालय की पढ़ाई पूरी कर पास कर गए हैं फिर भी उनके अभिभावक शिक्षा समिति के सदस्य या सचिव बने हुए हैं तो वैसे प्रधान पर सीधे रूप से कार्रवाई की जाएगी तथा संबंधित बीईओ दोषी पाए जाएंगे।
गिरीश कुमार
डीपीओ, सर्व शिक्षा