बच्चे हों न हों लेकिन उपस्थिति पंजी अप टू डेट
सुपौल। सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति व ठहराव को लेकर सरकार द्वारा एक से एक महत्वाकांक्षी योज
सुपौल। सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति व ठहराव को लेकर सरकार द्वारा एक से एक महत्वाकांक्षी योजनाएं चलाई जा रही है। लेकिन हकीकत है कि निर्धारित मानक को भी नहीं छू पाया है विद्यालय। शिक्षा को मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखते हुए सरकार ने विद्यालयों में बच्चों के नामांकन व ठहराव को लेकर कई योजनाओं की शुरुआत की। शिक्षकों को अपने-अपने पोषक क्षेत्र में घूम-घूमकर विद्यालय से बाहर के बच्चों के नामांकन की जवाबदेही सौंपी गई। नामांकन में उपलब्धियों का आंकड़ा अच्छा खासा दिखने लगा। विद्यालय में बच्चे हों न हों लेकिन उपस्थिति पंजी अप टू डेट दिखाई देने लगी। विद्यालय से बाहर के बच्चों की संख्या को लगभग नगण्य पर ला दिया गया। शिक्षकों की उपलब्धि भी हुई और उनके पौ बारह भी। यानी खिचड़ी की हाजिरी में उन्हें मदद मिलने लगी। फिर अगला चरण शुरु हुआ फेंक नामांकन पर नियंत्रण का। विद्यालयों में छापामारी की जाने लगी, उपस्थिति पर सख्ती दिखाई गई वास्तविक स्थिति स्पष्ट होने लगी और फेंक नामांकन को पंजी से उड़ा दिया गया। एकबार ऐसा लगा कि अब बच्चों की उपस्थिति मानक के अनुकूल दिखने लगेगी। लेकिन विडंबना कहिये कि फिर भी मानक को नहीं छूआ जा सका है। हालांकि जो आंकड़े दिखाई देते हैं उसमें भी जमीनी फर्क होता है।
योजनाओं का नहीं दिखता रंग
मध्याह्न भोजन योजना, मुख्यमंत्री पोशाक योजना सहित तरह-तरह की योजनाओं की शुरुआत की गई। कुछ समय के लिये इसका असर भी दिखाई देता है। यानी किसी कारण से यदि मध्याह्न भोजन बंद हो जाये उस विद्यालय की उपस्थिति में स्पष्ट फर्क दिखाई देने लगता है। लेकिन यहां सोचने के लिये मजबूर होना पड़ता है कि भोजन नहीं बनने से उपस्थिति घटती है लेकिन बनने से बढ़ती क्यों नहीं।
सख्त आदेश भी असरदार नहीं
सरकार द्वारा जारी किया गया सख्त आदेश भी असरदार नहीं दिखाई देता है। जानकारी अनुसार, सरकार द्वारा 80 प्रतिशत उपस्थिति को मानक माना गया जिसके तहत पत्र जारी किये गये कि यदि विद्यालयों में 75 प्रतिशत की उपस्थिति नहीं होती है तो संबंधित शिक्षकों के वेतन को रोक दिया जायेगा। इधर जिला पदाधिकारी ने भी जिले के अधिकारियों को प्रखंड वार कुछ विद्यालयों को चिह्नित करते हुए उपस्थिति को मानक पर कसने की जवाबदेही सौंपी। लेकिन इसके भी नतीजे संतोषजनक नहीं निकले।