घटतौली के शिकार उपभोक्ता, उदासीन प्रशासन
सुपौल। भले ही उपभोक्ताओं के संरक्षण को ले अधिनियम बना दिया जाए। लेकिन अमूमन उपभोक्ता ठगी के शिकार हो
सुपौल। भले ही उपभोक्ताओं के संरक्षण को ले अधिनियम बना दिया जाए। लेकिन अमूमन उपभोक्ता ठगी के शिकार होते रहते हैं। बाजार में आपको एक किलो की जगह नौ सौ ग्राम ही सामान मिले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। विभागीय निष्क्रियता का ही आलम है कि गांव-देहात की कौन कहे शहरों में भी ईट-पत्थर के बटखरे धड़ल्ले चलते हैं। कार्रवाई तो दूर कभी जांच पड़ताल भी नहीं होती। जबकि सरकार ने उपभोक्ताओं के लिए भी अधिकार तय कर रखे हैं। विडंबना कहिए कि इन अधिकारों का उपभोक्ता न तो उपयोग कर पाते हैं और न ही दुकानदारों की इसकी चिंता रहती है।
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ठगी के शिकार होते उपभोक्ता
बाजार में कदम-कदम पर लोगों की जेब ढ़ीली हो जाती है। शायद ही कोई दुकानदार पक्की रसीद देता है, वजन और क्वालिटी की बात ही कुछ और है। तभी न जगह-जगह स्लोगन लिखे होते हैं और कंपनियां अब नकलबाजों से सावधान का इस्तहार भी निकालने लगी है।
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व्यवसायी भी रहते परेशान
ऐसा नहीं कि बाजार में हर व्यवसायी इसी विचारधारा से जुड़ा होता है। वह चाहता है कि उसे बाटों का नवीनीकरण हो और वह नियम कायदे का पालन करें। व्यवसायी की माने तो माप तौल कार्यालय में एक तो कोई मिलता नहीं है। यदि मिल भी गया तो लेने देने की बात पहले होने लगती है।
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-हमारे अधिकार
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-किसी भी उत्पाद सेवा के बारे में जानने का पूरा अधिकार
-खरीदारी से पूर्व उससे संबंधित पूरी जानकारी लेने का अधिकार
-खतरनाक, असुरक्षित वस्तु अथवा सेवा से सुरक्षित रहने का अधिकार
-कुछ भी चुनने का अधिकार
-आपकी बात पूरी सुनी जाए यह है अधिकार
-वस्तु सेवा से खुश न होकर शिकायत करने का अधिकार
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इसका रखें पूरा ख्याल
-हर खरीद के बाद पक्की बिल प्राप्त करें
-विज्ञापनों के उंचे दावों से भ्रमित न हो
-पूरी जानकारी प्राप्त करके ही खरीदारी करे
-वारंटी, गारंटी कार्ड के साथ कैशमेमो संभाल कर रखे
-वस्तु खरीदने में सेवा लेने से पूर्व नियम शर्तो को भलीभांति पढ़ लें
-कोई भी शर्त गारंटी सुविधा लिखित में प्राप्त करें