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बाढ़ के मायके में सुखाड़

सुपौल [भरत कुमार झा]। बाढ़ के मायके में सुखाड़ की स्थिति यह विडंबना नहीं तो और क्या है? कोसी जो हमेशा

By Edited By: Published: Mon, 03 Aug 2015 06:25 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2015 06:25 PM (IST)
बाढ़ के मायके में सुखाड़

सुपौल [भरत कुमार झा]। बाढ़ के मायके में सुखाड़ की स्थिति यह विडंबना नहीं तो और क्या है? कोसी जो हमेशा से अपनी मोहक और मारक क्षमता के लिये विख्यात रही है। बरसात के मौसम में खासकर वह उतावली हो जाती है। भले ही तटबंध के बाहर कोसी ने अपनी मर्यादा लांघकर कुछ-कुछ वर्षो के अंतराल पर लोगों को अपना उग्र रूप दिखाया है। लेकिन तटबंध के अंदर हर वर्ष गांव के गांव जल प्लावित हो जाते हैं। इस मौसम में तटबंधों के बीच खेती की बात कहां होती है। लेकिन अबकी किसानों ने पंपसेट से पटवन कर कोसी के गांवों में भी धान की रोपाई की है। खेतों में दरारें पड़ गई हैं। तटबंधों के बाहर मानसून से निराश किसानों ने अपने बलबूते रोपाई तो कर दी और अब आसमान की ओर टकटकी लगाये हैं।

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60 प्रतिशत रोपनी भी नहीं हुआ संभव

गेहूं में फाका की सरकारी स्तर पर भरपाई करने को ले धान फसल को प्राथमिकता के तौर पर लिया गया। सरकार ने जिले में 88 हजार हेक्टेयर भूमि में धान लगाने की फसल का लक्ष्य अख्तियार किया। जुलाई माह बीत चुका है और जिले में महज 60 प्रतिशत रोपनी भी संभव नहीं हो पाई है। सिंचाई वास्ते सरकार का हर स्किम फेल होते देख यहां के किसान अपने बूते किसानी करने को विवश हैं। इधर फसल लगाने और फिर उसे बचाने के के लिए किसान को अपने बूते पंपसेट के सहारे सिंचाई करनी पड़ती है। महंगी सिंचाई की इस व्यवस्था से आधे से अधिक किसान बीच में ही हिम्मत छोड़ देते हैं।

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जब बनी परियोजना

1953 में जब कोसी परियोजना की नींव रखी गई दोनों तटबंधों के बीच 2.7 लाख एकड़ जमीन स्थायी बाढ़ से ग्रसित हो गयी। तटबंध से सुरक्षित क्षेत्र की 4.5 लाख एकड़ जमीन जलजमाव की समस्या से ग्रसित हो गई। पूर्वी कोसी नहर प्रणाली से 17.59 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई करने का वादा किया गया था। लेकिन 90 के दशक तक 3.195 एकड़ की सिंचाई की गई थी। यह उर्वर क्षेत्र अक्सर बाढ़ के साथ-साथ सुखाड़ की मार भी झेलता रहता है। बाढ़ तो यहां कई मायने में फायदेमंद भी है, पर सुखाड़ का नतीजा तो सिर्फ बर्बादी और तबाही है। बाढ़ के कारण यहां शायद ही अकाल पड़ा होगा। लेकिन सुखाड़ अक्सर अकाल पैदा करता है।

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नहरें भी नहीं हो रही कामयाब

1963 में कोसी बराज के पूर्वी और पश्चिमी छोड़ से नहर प्रणालियां निकाली इगई। सर्वप्रथम 43 किलोमीटर लंबे मुख्य पूर्वी नहर का निर्माण 1957 में शुरू किया गया। बराज के बायें किनारे से अररिया जिले के बथनाहा तक निकाली इस मुख्य नहर से पहले मुरलीगंज, जानकीनगर, पूर्णिया और अररिया शाखा नहरें निकाली गई। बाद में सहरसा और मधेपुरा जिलों में सिंचाई के लिए राजपुर शाखा नहर निकाली गई। राजपुर शाखा नहर 1962 में बनना शुरू हुआ। जिससे 1968 से सिंचाई शुरू हुई। बांकि पूर्व निर्मित चारों शाखा नहरों के इलाके में जुलाई 1964 से ही सिंचाई शुरू हो गई थी। इस प्रकार पूर्वी नहर प्रणाली द्वारा सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया और कटिहार जिलों के 22.69 लाख एकड़ के क्षेत्रफल में करीब 2887 किलोमीटर लंबी नहरों का जाल बिछाया गया और यह अपेक्षा की गई कि इससे चारों जिलों की कम से कम 15.13 एकड़ की सिंचाई होगी। इसी प्रकार पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली भी विकसित की गई। जिससे भारत और नेपाल समीक्षा क्षेत्र के 6.45 लाख एकड़ जमीन सिंचाई की परिकल्पना की गई। लेकिन कुछ ही वर्षो बाद पूर्वी और पश्चिमी नहर प्रणालियों में बालू और गाद भरने लगे और सरकार की परिकल्पना और कोसीवासियों के सपने अधूरे पड़ गए। रही सही कोर कसर कुसहा त्रासदी ने पूरी कर दी। नहरों के जाल को तहस-नहस कर दिया। नहरों के पुनस्र्थापन पर फिर करोड़ों की राशि खर्च की जाने लगी। नहरों में पानी छोड़ विभाग हर साल इठलाता रहा, भले ही किसानों के खेतों तक पानी पहुंचा कि नहीं इसकी किसे फिक्र रही।

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'सुखाड़ की स्थिति को देखते हुए सरकार ने डीजल अनुदान देने का प्रावधान किया है। इसके तहत जिले को 2 करोड़ 10 लाख 6 हजार की राशि आवंटित की गई है।'

-संतलाल साह

जिला कृषि पदाधिकारी


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