रोजा के दरम्यान झूठ बोलने से किया जाता है तलकीन
सुपौल। हमने कुरआन को रमजानुल मुबारक के आखिरी आशरा लैलतुल कद्र में उतारा। जिसकी तस्दीक कुरआन मजीद में
सुपौल। हमने कुरआन को रमजानुल मुबारक के आखिरी आशरा लैलतुल कद्र में उतारा। जिसकी तस्दीक कुरआन मजीद में सुरत लैलतुल कद्र में मौजूद है। उक्त बातें शुक्रवार को जामा मस्जिद थरबिट्टा में मौलाना मो. नूर ने तकरीर के दौरान व्यक्त किया। मौलाना मो. नूर ने अपने संबोधन में हदीश का हवाला देते हुए बयान किया कि रमजानुल मुबारक को तीन हिस्सों रहमत, मगफिरत और जहन्नुम से निजात में बांटा गया है। खुदा के फज्ल से रोजेदारों ने अल्लाह-तआला की रजा और खुशनुदी हासिल करके रमजान के एक हिस्सा (आशरा) रहमत को कामयाबी के साथ गुजारने दूसरे आशरा मगफिरत की ओर बढ़ रहे हैं। रमजानुल मुबारक में रोजा की शुरूआत सुबह सादिक से पहले सेहरी से की जाती है तथा सूरज डूबने के बाद इफ्तार से रोजा को पूरा किया जाता है और यह सिलसिला इदुल फितर का चांद दिखाई देने तक किया जाता है। रमजानुल मुबारक में रात की नमाज ऐशा के तुरंत बाद 20 रिक्आत अतिरिक्त ताराबीह की नमाज अदा की जाती है। जिसमें हाफिज कुरआन पाक की तिलावत करते हैं। रोजादारों को रोजा के दरम्यान झूठ, फरेब और गुनाहों से दूर रहने की तलकीन की जाती है। जिसने इस नसीहत पर अच्छी तरह अमल किया, ऐसा व्यक्ति असल में रोजा की दौलत से फैजयाब हो गया। रमजानुल मुबारक का आखिरी आशरा शुरू होते ही मस्जिदों में गांवों के किसी व्यक्ति को एतकाफ में बैठ कर कुरआन की तिलावत एवं एबादत में लग जाना पड़ता है। गांव के एक व्यक्ति मस्जिद में एतफाक कर लिया तो पूरे गांव पर से इसकी जिम्मेवारी खत्म हो जाती है। ईद का चांद देखने पर एतफाक खत्म हो जाता है।