ढ़ूंढ़ती रह जाएगी निगरानी, नहीं मिलेगी निशानी
सुपौल [भरत कुमार झा] शिक्षक नियोजन में गड़बड़ी और नियमों की अनदेखी हमेशा सुर्खियों में रही। विरोध में
सुपौल [भरत कुमार झा] शिक्षक नियोजन में गड़बड़ी और नियमों की अनदेखी हमेशा सुर्खियों में रही। विरोध में लोग प्राधिकार और न्यायालय का दरवाजा खटखटाते रहे। अंतत: कोर्ट ने हस्तक्षेप किया और नि योजित शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच की जिम्मेवारी निगरानी विभाग को सौंपी गई। निगरानी की टीम पहले जिला और फिर प्रखंडों तक पहुंच गई। जांच की प्रक्रिया प्रारंभ की गई। जिला परिषद अथवा नगर परिषद या प्रखंडों से तो कागजात उपलब्ध कराये जाने लगे लेकिन मामला पंचायतों में आकर अटकने लगा। यहां स्थिति यह है कि एक तो पंचायतों में से पचास प्रतिशत पंचायतों के कागजात अब तक उपलब्ध नहीं हो पाये हैं और जहां से हो भी रहे हैं तो कई के कागजात आधे अधूरे हैं।
निगरानी जांच प्रारंभ हुए एक महीने से अधिक का समय गुजर गया लेकिन अधिकांश पंचायतों ने संबंधित सभी कागजात उपलब्ध नहीं कराये हैं। अब यहां देखिए कि एक तो पंचायत सचिवों का अन्यत्र तबादला हो गया, या फिर इनमें से कई सेवानिवृत हो गये। वैसे भी इनके पास कई तरह के प्रभार होते हैं। बजाप्ता इनका कहीं दफ्तर व्यवस्थित नहीं होने की वजह से तमाम कागजात इनके झोले में ही हुआ करता है। दूसरा कभी इनलोगों ने इस मामले को गंभीरता से लिया ही नहीं कि इनके कागजात भी सलामत रखे जाने हैं। विभागीय सूत्रों की माने तो 2006 व उससे पहले के कागजात में परेशानी हो रही है। वैसे भी शुरुआती दौर में शिक्षकों की नौकरी पंचायतों में शाही अंदाज में बंटी। मार्केट वैल्यू टटोलने के बाद ही मेरिट लिस्ट जारी किया जाता था। नतीजा हुआ कि एक तो अभी तक आधे पंचायतों यानी पचास प्रतिशत पंचायतों के दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो पाये हैं। जिसको लेकर संबंधित प्रखंड के प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी द्वारा पंचायती राज पदाधिकारी को रिपोर्टिग भी की गई है। जहां से उपलब्ध भी हुए उनमें से कई पंचायतों से मूल रूप से मेधा सूची ही नहीं उपलब्ध हो पा रही है। संबंधित सचिवों का कहना है कि उन्हें प्रभार में नहीं मिला तो कहीं से कहा जाता है कि मेधा सूची ही खो गई। वैसे निगरानी मूल दस्तावेज खंगालने में तो जुटी है लेकिन ऐसे में सच्चाई तक पहुंचना निगरानी के लिये भी आसान नहीं होगा।