आज भी बालू से पटे हैं खेत
सुपौल: त्रासदी के छह वर्ष उपरात भी प्रखंड क्षेत्र के लोग विभीषिका के उस विनाशकारी मंजर को अब तक पूरी
सुपौल: त्रासदी के छह वर्ष उपरात भी प्रखंड क्षेत्र के लोग विभीषिका के उस विनाशकारी मंजर को अब तक पूरी तरह से भुला नही पाए हैं। वर्ष 2008 के इस भीषण त्रासदी के दौरान कोसी ने इस कदर तबाही मचायी कि देखते ही देखते सैकड़ों घर काल कलवित हो गए, ग्रामीण सड़कें ध्वस्त हो गई, पुल-पुलिया क्षतिग्रस्त हो गए तथा सैकड़ों एकड़ उपजाउ खेत में बालू भर गया। स्थिति इतनी भयावह थी कि लोगों को महीनों घर बार छोड़कर सरकारी कैंपों में शरण लेना पड़ा। वर्ष 2008 के मुकाबले स्थिति भले ही बेहतर हुई हो। परन्तु कुसहा-त्रासदी के उस गम को भुला पाना लोगों के लिए काफी कठिन है। राज्य सरकार द्वारा त्रासदी के उपरात पहले से बेहतर कोसी बनाने का संकल्प दोहराते हुए वृहद स्तर पर योजनाएं चलाई गई। कोसी पुनर्निर्माण योजना के तहत करोड़ों रूपये खर्च कर क्षतिग्रस्त चैनल व नहरों की मरम्मत करवायी गई परन्तु आज भी नहरों के माध्यम से सिंचाई का लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा है। प्रखंड के छातापुर, लक्ष्मीपुर खुंटी, डहरिया ,लालगंज, उधमपुर, रामपुर, माधोपुर, मधुबनी, लक्ष्मीनिया ,जीवछपुर इत्यादि पंचायतों के सैकड़ों एकड़ खेत आज भी बालू से पटे हैं जहा कोई खेती नहीं हो पा रही। कुसहा त्रासदी के दौरान ध्वस्त हुई ग्रामीण सड़कों के पुनर्निर्माण हेतु सरकार द्वारा विश्व बैंक की मदद से कई नयी सड़कों का निर्माण करवाया जा रहा है। कुछ सड़कों का निर्माण कार्य चल रहा है तो कुछ प्रक्रियाधीन है। कुल मिलाकर सड़क की बात करें तो स्थिति 2008 से बेहतर कही जा सकती है। कुसहा त्रासदी के दौरान ध्वस्त हुए अधिकाश पुल पुलियों का भी निर्माण सरकार द्वारा करवाया जा रहा है। कुछ पुल जैसे चुन्नी डायवर्सन के निकट ध्वस्त हुआ सीमेंट का पुल आज भी कुसहा त्रासदी की याद को तरोताजा कर देता है।