ईद-उल-फितर: अल्लाह-तआला के ईनाम का दिन
-ईद पर विशेष
जसीमउद्दीन रहमानी/किशनपुर:माहे शव्वाउल मुअज्जम की पहली तारीख अल्लाह-तआला की निगाह में ईनाम और बदला के लिए याद किया जाता है। तथा इस एहसान के एवज में मुसलमान रमजानुल मुअज्जम के पूरे माह के दौरान अल्लाह-तआला की खुशनुदी के वास्ते रोजे अर्थात भूखे प्यासे रहने के बाद ईद जैसी नेअमत से सरफराज होते हैं। हजरत मौलाना मो.वसी रहमानी बताते हैं कि रमजान जैसी बाबरकत महीने में अल्लाह-तआला ने पिछली उन्मतो के रोजे और उम्मते मुहम्मदिया के रोजे में तीन ऐसे मरातिब अता किये हैं। जो पहली उम्मतो को हासिल नहीं था। वह नेअमतें थी रमजान के दौरान अतिरिक्त 20 रिक्तआत ताराबीह की नमाज, एतकाफ और शवे कद्र जैसी फजीलत। अल्लाह-तआला का कौल है कि हमने कुरआन मजीद को रमजान के लैलतुल कद्र की रात में उतारा। इस मुकद्दस रात को हजार महीनों से बेहतर बताया गया है। रोजे के तमाम शर्तो को पूरा करने का इनाम अल्लाह-तआला ने इदुलफितर की शक्ल में अता फरमाया है। ईद के मौका पर मुसलमान उन गरीब और मुहताजों को भी ईद की खुशी में शामिल करने के लिए फितरा के जरिये जरूरतों को पूरा करने का काम करते हैं। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फरमाते हैं कि ईद की नमाज अदा करने से पहले साहबे निसाब की जिम्मेवारी है कि वह सदका फितर अदा कर दे। ईद के दिन सुबह होते ही मुसलमान ईद की नमाज की तैयारी शुरू कर देते हैं। तथा गुसुल (स्नान) और वजू के बाद अच्छे और नये कपड़े पहन कर ईदगाह की ओर रवाना होते हैं। मौका पर ईदगाह में इमाम साहब की इमामत में ईद की दो रिक्आत नमाज अदा की जाती है। जहां अमीरी और गरीबी का फर्क खत्म हो जाता है। खुशनसीब है वह मुसलमान जिसने रमजान के बाबरकत महीने के तीन अशराओं रहमत, मगफिरत और दोजख से निजात का शर्फ हासिल करने, बेवाओं और लाचारों को फितरा से हाजतों को पूरा करते हुए ईदुल फितर की नमाज अदा करने का काम किया। बेशक वह मुसलमान अल्लाह और उसके आखिरी पैगम्बर की निगाह में कामयाब है।