लोभ के कारण टूटता जा रहा है परिवार, समाज व राष्ट्र
सुपौल जागरण संवाददाता: वसंत नवरात्रा व रामनवमी के अवसर पर श्री श्री 108 श्री महावीर स्थान, महावीर चौक के द्वारा स्थानीय पब्लिक लाईब्रेरी एण्ड क्लब के परिसर में आयोजित श्री राम कथा के सातवें दिन रविवार को बनारस से आएमानस भाष्कर श्री विद्यासागर महाराज अपने कथा वाचन के दौरान कहा कि भगवान राम के वनवास के बाद भरत जी ननिहाल से अयोध्या आए। जिस अयोध्या में चारों तरफ आनंद व खुशी छाया रहती थी, उस अयोध्या का प्रत्येक घर श्मशान की तरह दिखाई पड़ रहा है। कहा कि भरत जी ज्यों ही महल में प्रवेश किए मां कैकेयी स्वर्ण थाल में आरती सजाकर तैयार है। भरत जी ने पूछा- मां भैया राम, लक्ष्मण और भाभी जानकी कहां है? पिताजी अपने महल में दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। कैकेयी ने कहा- पिताजी स्वर्ग चले गए। उसी समय भरत लाल जी राम के जंगल जाने व पिताजी के मरण का समाचार सुन मूर्छित हो कर गिर पड़े। कहा कि भरत त्याग के मूिर्त्तमान रुप हैं। गुरु वशिष्ठ ने भरत से कहा- पिता ने तुम्हें अयोध्या का राज दिया है। सारे शोक-संताप को छोड़ कर अयोध्या का राज करो। आज के परिवेश में घर, परिवार, समाज, राष्ट्र सब लोभ के कारण टूटता चला जा रहा है। अयोध्या की इतनी बड़ी सम्पत्ति को छोड़कर राम जंगल चले गए। भरत ने कहा- यह सम्पत्ति राम की है। गुरुदेव हमें यदि आप राजा बनाओगे तो यह पृथ्वी रसातल में चली जाएगी। हमारे समान पापी कौन हो सकता है। यदि मेरा जन्म नहीं हुआ होता तो आज राम का वनवास और पिताजी का मरण नहीं हुआ होता। गुरु वशिष्ठ ने भरत को समझाते हुए हम मनुष्यों को भी जीवन जीने का संदेश दिया कि सुख-दु:ख, हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधाता के हाथ की चीज है। अयोध्यावासियों ने भी भरत से कहा आप राज करो। भरत जी ने कहा- राज बनाने से पहले हमारे स्वास्थ्य का परीक्षण करा लिया जाय। हमारे पास नौ ग्रहों का प्रकोप, गठिया का रोग, बिच्छु का डंक, ये तीनों रोग नहीं कुरोग है। वशिष्ठ जी ने कहा कौन सा दवा दिया जाय। भरत ने कहा जब तक प्रभु राम के चरणों का दर्शन नहीं होगा, तब-तक हमारे सारे रोग समाप्त नहीं होंगे। भरत जी बात सुनकर सारे अयोध्यावासी प्रसन्न हो गए। लोगों ने यही निर्णय लिया कि प्रात: काल राम से मिलना है।