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भाई-बहन के बलिदान व प्रेम का प्रतीक अनोखा मंदिर, जानिए इसकी खासियत

सिवान में भाई-बहन के बलिदान व प्रेम का प्रतीक एक अनोखा मंदिर है। पूरे विश्व में अपने ढ़ंग के इस अकेले मंदिर में हर साल रक्षाबंधन के दिन मेला लगता है। यहां लोग मन्नतें मांगते हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Tue, 16 Aug 2016 10:31 AM (IST)Updated: Thu, 18 Aug 2016 01:55 PM (IST)

पटना [वेब डेस्क]। भाई-बहन के प्रेम के किस्से तो बहुत हैं, बिहार के सिवान जिले में इस प्रेम की पूजा के लिए एक मंदिर बनाया गया है। रक्षा बंधन के दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में यहां स्थित एक खास पेड़ में भी राखी बांधी जाती है। बहनें यहां राखी चढ़ाकर भी भाइयों की कलाई में बांधती हैं।

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सिवान के दारौंदा प्रखंड के भीखाबांध स्थित यह मंदिर 'भैया-बहिनी मंदिर' के नाम से जाना जाता है। यूं तो सालो भर यहां श्रद्धालु आकर पूजा-अर्चना कर मन्नतें मांगते हैं, पर श्रावण पूर्णिमा और भाद्र शुक्ल पक्ष अनंत चतुर्दशी के दिन सिवान, सारण, गोपालगंज, पश्चिमी व पूर्वी चंपारण व पटना आदि जिलों के अलावे यूपी व झारखंड से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर पूजा-अर्चना करते हैं व मन्नतें मांगते है।

क्या है इतिहास

- लोक कथाओं के मुताबिक मुगल शासन काल में एक व्यक्ति अपनी बहन को रक्षा बंधन के दो दिन पूर्व उसके ससुराल (भभुआ) से विदा कराकर घर ले जा रहा था। भीखाबांध के समीप मुगल सैनिकों की नजर उनपर पड़ी।

- मुगल सिपाहियों की नीयत खराब हो गई। वे डोली को रोककर बहन के साथ बदतमीजी करने लगे। इसपर भाई सिपाहियों से युद्ध करने लगा।

- सिपाहियों की संख्या अधिक होने के कारण भाई कमजोर पड़ गया। मुगल सिपाहियों ने उसे मार डाला।

- बहन खुद को असहाय देखकर भगवान को पुकारने लगी। कहा जाता है कि एकाएक धरती फटी और दोनों धरती के अंदर चले गए।

- डोली लेकर चल रहे चारो कहारों ने भी बगल के कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी।

- कहते हैं कि जहां भाई-बहन धरती में समाए थे, वहीं दो बरगद के पेड़ उग आए। दोनों वट वृक्ष ऐसे हैं कि देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि भाई अपनी बहन की रक्षा कर रहा है। वट वृक्ष अब करीब पांच बीघा जमीन में फैल गया है।

- उस स्थान पर पहले मिट्टी का मंदिर बनाया गया। इसके बाद जैसे-जैसे मंदिर की महत्ता बढ़ी, बाद में श्रद्धालुओं ने पक्के मंदिर का निर्माण कराया। यह अब श्रद्धा का केंद्र बन गया है।

अतिक्रमण का शिकार हुआ परिसर

मंदिर के लिए आज तक कोई पूजा समिति नहीं हैं और न हीं इसके बचाव की कोई पहल की गई है। इस ऐतिहासिक मंदिर परिसर में कभी छह बीघा में फैले वटवृक्ष अब कुछ कट्ठा में सिमट गए हैं। भूमि पर मकान व दुकान बनाकर अतिक्रमण किया जा रहा है।

जुटते हैं श्रद्धालु

यह एक तरह से बलिदान स्थल है। इस स्थान के प्रति लोगों में अटूट आस्था रही है। पूजा के वक्त यहां काफी भीड़ लगती है। लोगों की मान्यता है कि यहां मन्नतें पूरी होती हैं। राखी के दिन यहां पेड़ में भी राखी बांधी जाती है। लोग यहां राखी चढ़ाकर भी अपने भाइयों की कलाई में बांधते हैं।


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