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नहाय खाय के साथ महापर्व छठ की शुरुआत

जेएनएन, सिवान : नहाय खाय के साथ सोमवार को महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान की शुरुआत हो गई। इसके साथ ह

By Edited By: Published: Tue, 28 Oct 2014 01:06 AM (IST)Updated: Tue, 28 Oct 2014 01:06 AM (IST)
नहाय खाय के साथ महापर्व छठ की शुरुआत

जेएनएन, सिवान : नहाय खाय के साथ सोमवार को महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान की शुरुआत हो गई। इसके साथ ही जिले में घर-घर छठी मइया के गीतों की स्वर लहरियां गूंजने लगीं हैं। गीतों से बाजार और घर गूंजायमान हो रहे हैं। चौतरफा उत्साह का वातावरण बन गया है। परंपरागत गीतों में कांच ही बांस के बहंगियां-बहंगी लचकत जाय, छठी मईया आई दुवरियां, महिमा बा राउर अपार ए छठी मईया जैसे गीतों की धूम है। कई गायकों ने अपने कैसेट बाजार में उतारे हैं।

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अनुष्ठान के दूसरे दिन छठ व्रती महिलाएं खरना करेंगी और बुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य दिया जाएगा। इसको लेकर घाटों पर जिला प्रशासन व नगर परिषद की ओर से चाक-चौबंद व्यवस्था की गई है। नहाय खाय की धूम शहर से लेकर प्रखंडों तक में देखी गई। नदियों के किनारे, जलाशयों में, तालाब-पोखरों व नहरों में व्रतियों ने स्नान किया और संयमित भोजन ग्रहण कर छठ का संकल्प किया।

उधर व्रत की खरीदारी को लेकर बाजार पूरे दिन गुलजार रहे। भगवानपुर, बसंतपुर में दिन भर विभिन्न दुकानों पर लोगों की भीड़ उमड़ी रही। जिला मुख्यालय पर बाजारों में भीड़भाड़ के कारण जाम का नजारा रहा। लोग यहां लगे एटीएम में दिनभर पैसे की निकासी के लिए भीड़ लगाए रहे।

सरोवरों में स्नान को रही भीड़

नहाय खाय को लेकर व्रती महिलाओं का रेला नदी तटों व सरोवर पर उमड़ता रहा। गुठनी, सिसवन, रघुनाथपुर व दरौली से होकर गुजर रही सरयू में स्नान के लिए भारी संख्या में महिलाओं की भीड़ देखी गई। सुबह में स्नान ध्यान कर उन्होंने इस अनुष्ठान का शुभारंभ किया। इसके बाद लौकी की सब्जी बनाकर उसे ग्रहण किया। पं दिनेश कुमार पांडेय ने बताया कि प्रथम दिवस का व्रत मंगलवार से शुरू हो रहा है। इस दिन प्रथम दिवस व्रत शुरू हो रहा है। व्रती महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत रहेंगी और शाम को छठ भगवती का पूजन-अर्चन कर प्रसाद के रूप में रसियाव व रोटी का सेवन करेगी। उन्होंने बताया कि पुत्रवती महिलाएं जहां अपने पुत्र की दीर्घायु के लिए व्रत करती है तो वहीं यह व्रत पुत्रप्राप्ति के लिए भी किया जाता है। कई महिलाएं पुत्र प्राप्ति की खुशी में करती हैं।

कद्दू व सरसो का साग खाने की हैं परंपरा

शास्त्रों के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से हो जाती है। इस दिन कद्दू की सब्जी व सरसों का साग खाने की परंपरा है। धार्मिक कारण यह है कि सरसो व कद्दू को शुद्ध व सात्विक माना गया है। वैज्ञानिक आधार यह है कि कद्दू सुपाच्य होता है जिससे व्रती के सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है जबकि सरसो के साग की तासीर गर्म होती है। छठ व्रत में व्रती को काफी समय तक जल में खड़ा रहना पड़ता है इसलिए सरसो का साग स्वास्थ्यकारी होता है।

परदेशी पहुंच रहे घर

महापर्व छठ को ले देश के विभिन्न राज्यों में रह रहे जिले के लोगों का आगमन जारी है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता सहित अन्य बड़े शहरों में रहकर नौकरी करने वाले जिलेवासी सपरिवार छठ मनाने के लिए घर लौट रहे है। इन शहरों से आने वाली ट्रेनों में पैर रखने तक की जगह नहीं है। यहीं हाल बसों की भी है। यह खचाखच होकर जिला मुख्यालय पहुंच रही है।

पर्यावरण सरंक्षण का प्रेरक है छठ

सिसवन : सूर्योपासना के रूप में मुख्यत: बिहार, झारखंड व पूर्वी उत्तर प्रदेश व नेपाल के तराई क्षेत्रों में हर्षोल्लास के बीच छठ पर्व मनाया जाता है। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण के प्रति चेताता है। नदियों व पोखरों के किनारे अस्ताचलगामी व नवोदित सूर्य को अ‌र्ध्य दे सम्मान प्रकटर करने की परंपरा पर्यावरण संरक्षण के महत्व को प्रकट करता है। इस पर्व में संतुलित पर्यावरण के दुश्मन प्लास्टिक का प्रयोग वर्जित है। खरना व छठ के प्रसाद पर्यावरण के अनुकूल सूखी लकड़ियों व गोइठे पर पकाने की परंपरा है। प्रसाद के रूप में रोटी, गुड़ का खीर, कद्दू, सिघांडा, ईख, सुथनी, दातुन के रुप में आम का डंठ, सेंधा नमक आदि के प्रयोग इस पर्व के दौरान श्रद्धालुओं को कदम-कदम पर पर्यावरण सरंक्षण की सीख देता है। इस महापर्व में सूप, मिट्टी का बरतन, मिट्टी के चूल्हे, जल श्रद्धालुओं को पर्यावरण से बांध कर रखते है।

महंगाई पर आस्था भारी, बाजारों में बढ़ी चहल-पहल

लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर सोमवार से ही बाजारों में ही चहल-पहल बढ़ गई है। पूजन-सामग्री की खरीदारी के लिए सुबह से देर रात तक सभी दुकानों पर भीड़ जमी रही। ग्राहकों द्वारा कई बार सामान मांगने पर दुकानदारों के व्यवस्तता से विलंब से मिल रहा है। पिछले वर्ष की अपेक्षा पूजन समाग्री के दामों में कुछ बढ़ोत्तरी हुई जो श्रद्धालुओं की आ स्था को डिग्गा नहीं पा रहा है। महंगाई के बावजूद भी खरीदारों पर कोई असर नहीं पड़ रहा। महंगाई पर आस्था पर भारी पड़ रही है। जिला मुख्यालय के अलावा भगवानपुर, दारौंदा, सिसवन, दरौली, मैरवा, गुठनी, हसनपुरा, रघुनाथपुर, बसंतपुर सहित अन्य प्रखंडों में खरीदारी को भारी भीड़ उमड़ रही है।

पूजा सामग्री मूल्य

आम की लकड़ी 10 रुपये प्रति किलो

दउरा 200 रुपये प्रति पीस

कलसूप 50 रुपये प्रति पीस

ढाका 250 रुपये प्रति पीस

मिट्टी का चूल्हा 50 से 100 रुपये प्रति पीस

साठी का चावल 80 रुपये प्रति किग्रा

गुड़ 38 रुपये

ईख 60 रुपये कोसी

गागल 20 रुपये जोड़ा

सेव 60 से 80 रुपये किलो

संतरा 50 से 60 रुपये

पक्का केला 20 से 35 रुपये दर्जन

कच्चा केला 30 रुपये दर्जन

अदरख 100 रुपये प्रति किग्रा

हल्दी 100 रुपये किलो

सरीफा 20 प्रति जोड़ा

अन्ननास 50 रुपये जोड़ा

नारियल 50 से 60 रुपये जोड़ा

सिंघाड़ा 100 रुपये किग्रा

घी 500 रुपये किग्रा

मूली 80 रुपये किलो

बोरे 100 रुपये किलो

सुथनी 100 रुपये किलो

तालाब की साफ-सफाई के लिए दिया आवेदन

शहर के पकड़ी बंगाली गौशाला रोड स्थित जिले के इकलौते सूर्य मंदिर की साफ-सफाई के लिए ग्रामीणों ने अनुंमडल पदाधिकारी को आवेदन दिया है। जिसमें मंदिर के समीप स्थित पोखरे की साफ-सफाई करवाने की अपील की है। आवेदन देने वालों में पूर्व मुखिया बाल किशुन सिंह, रामायण त्रिपाठी सहित अन्य ग्रामीण शामिल रहे।


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