कहीं बाढ़ से तबाही कहीं धरती प्यासी
समस्तीपुर जिले की भौगोलिक बनावट ही ऐसी है कि कहीं बाढ़ वरदान साबित होती है तो कहीं तबाही लिख जाती है।
समस्तीपुर। समस्तीपुर जिले की भौगोलिक बनावट ही ऐसी है कि कहीं बाढ़ वरदान साबित होती है तो कहीं तबाही लिख जाती है। दूसरी ओर, कई इलाके सालों भर सुखाड़ झेलने को अभिशप्त रहते हैं। जिले की विडंबना ही ऐसी है। उपर से कुदरत की लीला भी अजीब है। बाढ़ से तबाही के बीच जिले के चार प्रखंड भयंकर सुखाड़ की चपेट में हैं। कुछ दूसरे प्रखंडों में भी कमोवेश यहीं हाल है। इन इलाकों में किसान आसमान की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। उन्हें इस बात की ¨चता सता रही है कि उनकी खरीफ फसल सुखाड़ की भेंट न चढ़ जाए। आकाश पूरी तरह सूख गया है और खेतों में दरारें पड़ रही हैं। धान की जिस खेत में पानी और काई लगा होना चाहिए उसमें धुल उड़ रही है। जिले की कृषि व्यवस्था पूरी तरह मौसम के मिजाज पर निर्भर है। कृषि विभाग की कार्य योजना तभी रंग लाती है, जब मौसम किसानों को दगा न दें। मौसम के भरोसे ही कृषि की कार्य योजना बनाई जा रही है। जिले में ¨सचाई के सारे साधन ठप हैं। किसान अपने भरोसे खेती की गाड़ी खींच रहे हैं। फसल लगाकर किसान मौसम का इंतजार करते रहते हैं। खेतों में लगी फसल को जब पानी की जरूरत होती है तो किसान आकाश की ओर टकटकी लगाए रहते हैं। कब वर्षा की बूंदें टपकेंगी और उनकी फसल लहलहाएंगी।
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कब बरसेगा बदरेगा
खेतों में लगी फसल को मुरझाते देख किसानों के सामने कोई रास्ता नहीं नजर आ रहा है। किसान हसरत भरी नजरों से आकाश की ओर टकटकी लगाए हुए हैं। मालीनगर के किसान ऋषिकेश शर्मा कहते हैं कि फसल पर मौसम की मार पड़ी है। वर्षा नहीं हुई तो सूखते फसल को बचा पाना मुश्किल होगा। मंहगे डीजल से धान के फसलों की ¨सचाई संभव नहीं है। नयानगर के किसान चंद्रमाधव प्रसाद ¨सह, राजीव कुमार ¨सह बताते हैं कि वर्षा के पानी को कोई विकल्प नहीं है। अब पूरी तरह सुखाड़ की स्थिति बन गई है। सूखते खरीफ फसलों को कैसे बचाया जाए कोई चारा नहीं दिख रहा है। विभूतिपुर भूसवर के युवा किसान लल्लू ¨सह कहते हैं कि सरकार ¨सचाई की कोई माकूल व्यवस्था नहीं कर रही। सूखाड़ होने पर डीजल अनुदान की राशि बांटती है इससे किसानों को कोई फायदा नहीं होता है। पूसा मलिकौर के किसान रमेश राय, सुरेश राय, शंकर शर्मा आदि का कहना है कि गत सात-आठ वर्षाें से वर्षा की स्थिति ठीक नहीं चल रही है। इस बार उम्मीद थी कि अच्छी वर्षा होगी लेकिन मौसम के मिजाज ने दगा दे दिया। धान व अन्य खरीफ फसल बर्बाद हो रही है। इसे बचा पाना मुमकिन नहीं लग रहा है।
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¨सचाई साधनों का हाल अत्यंत बुरा
जिले में कृषि योग्य भूमि का कुल रकवा 200745 हेक्टेयर है। इस रकबे की ¨सचाई के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं है। सरकारी आकड़ों में जिले में इनमें से 182940 हेक्टेयर भूमि ¨सचित है। जिले में ¨सचाई के लिए नहर की कोई व्यवस्था नहीं है। ¨सचाई के लिए एक मात्र स्त्रोत भूमिगत जल है। चैत और वैशाख में स्थिति काफी बिगड़ जाती है। जिले में भूमिगत जल का स्तर औसत से दस फीट नीचे तक चला जाता है। अधिसंख्य पंप पानी देना बंद कर देता है। ¨सचाई की बात तो दूर पेयजल के लिए भी हाहाकार मच जाता है। जिले में ¨सचाई के पूर्व में लगाए गए 259 नलकूप में से 79 ही कागज पर चालू है। 99 उद्वह ¨सचाई परियोजना में 9 ही चालू हालत में है। वहीं 134 बार्ज संयत्र भी बेकार पड़े खराब हो चुके हैं।