उम्मीदों को लगते पंख की चल बसी आकांक्षा
समस्तीपुर। मां-बाप की लाडली आकांक्षा की वाणी में जितनी मिठास थी, उतनी ही उसके व्यवहार व चेहरे पर सौ
समस्तीपुर। मां-बाप की लाडली आकांक्षा की वाणी में जितनी मिठास थी, उतनी ही उसके व्यवहार व चेहरे पर सौम्यता थी। हैवानियत की हद पार करने वालों ने उसे मौत की नींद तो सुला दी लेकिन, उसके मां-बाप व समाज को ऐसा जख्म दिया जो शायद ही कभी भरे। जख्मों पर मरहम लगाने के लिए स्थापित पुलिसिया व्यवस्था का शायद इस खूनी कहानी के असली खलनायकों की गिरफ्तारी में इंटरेस्ट नहीं है। नन्हीं आकांक्षा के दरवाजे पर पर गुरुवार को भी मातमी सन्नाटा था। सन्नाटे को चीर रही थी मां की चीख व पिता की चीत्कार ।
दवा दुकानदार सुनील कुमार दंपती अपने आंसुओं का हिसाब मांगते हैं। लोगों का आना-जाना जारी है। सभी इस दुख में ढ़ाढ़स बंधाने आ रहे हैं। मां रह-रहकर बेहोश हो जाती है। उसके पास ही उसका वह पुत्र आय ष भी है जिसने अपने हाथों अपनी बड़ी बहन की चिता को मुखाग्नि दी।
द¨रदगों की हैवानियत की शिकार Þबेटी Þ आकांक्षा के शव का पोस्टमार्टम बुधवार की देर शाम समस्तीपुर सदर अस्पताल में हुआ। अंत्यपरीक्षण के बाद बुधवार को ही आकांक्षा का शव पंचतत्व में विलीन कर दिया गया। निकटवर्ती झमटिया घाट पर उमड़ी भीड़ ने गांव की बिटिया को अंतिम विदाई दी। ज्योंही छोटे भाई ने आकांक्षा को मुखाग्नि ही वहां उपस्थित सभी लोगों की आंखें बरबस ही भर आई। परिजनों के करूण कंद्रन व चीत्कार से माहौल ऐसा गमगीन हुआ कि हर कोई की आंखों से आंसू निकलने लगे। हर कोई नियति को कोस रहा था। तो द¨रदगी की हद पार करने वाले अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा देने का जोर भी। आकांक्षा के पिता सुनील कुमार राय बदहवास हो अपनी किस्मत को कोस रहे थे। तो मुखाग्नि देने के बाद छोटे भाई आयुष (10) बेसुध हो गया। कई अनुतरित सवालों से संदेह के घेरे में परिजन हरपुरबोचहा गांव में नौंवी की एक छात्रा को दिनदहाड़े ¨जदा जलाने की घटना के बाद पुलिस घटना की पड़ताल में जुटी हुई है। हैवानियत को शर्मसार करने वाली यह घटना पुलिस के लिए जहां एक चुनौती बनी हुई है। वहीं दूसरी ओर इस घटनाक्रम के दौरान कई ऐसे सवाल है जो पुलिस व ग्रामीण के लिए अनुतरित हैं। प्राथमिकी व मृतका के पिता सुनील कुमार राय के बयान के अनुसार पड़ोसी युवक द्वारा रंजिश की वजह से जघन्य घटना को अंजाम देने की बात ग्रामीण हलकों के साथ-साथ पुलिस के गले से नीचे नहीं उतर रही है। लोग इस हत्याकांड को अंजाम देने वाले युवकों की दुस्साहस पर ही प्रश्न चिह्न लगा रहे हैं कि आखिरकार इतनी बड़ी जघन्य घटना को अंजाम देने के बाद अभियुक्त कैसे फरार हो गए? घनी आबादी वाले हरपुरबोचहा गांव के इस टोले में इतनी बड़ी घटना होने के बाद आखिरकार स्थानीय पड़ोसियों को भनक तक क्यों नहीं लगी? सूचना मिलते ही परिजनों ने आखिरकार आनन फानन में पटना में इलाज के लिए भर्ती क्यों कराया? दस घंटे बीत जाने के बाद बाद भी स्थानीय पुलिस को क्यों नहीं सूचना दी गई? न पटना पुलिस को झुलसी आकांक्षा का बयान दर्ज कराया गया? सबसे बड़ा सवाल यह कि आखिरकार मौत के बाद बिना पोस्टमार्टम के अस्पताल ने प्रशासन न छुट्टी कैसी दे दी? फिर मौत के कई घंटे बाद विद्यापतिनगर पुलिस को सूचना दी गई। इस सवाल पर परिजनों की अपनी अलग दलील है कि इलाज में व्यस्तता की वजह से सूचना नहीं दी गई। ग्रामीण हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि क्या कोई दिनदहाड़े इतनी बड़ी जघन्य घटना को अंजाम दे सकता है?
थानाध्यक्ष मुकेश कुमार ने बताया कि मामला दर्ज कर लिया गया है। मामले का उद्भेदन करना भी पुलिस के लिए चुनौती है।