.. न जाने हम कैसे ¨हदू तुम मुसलमां हो गए
समस्तीपुर। अभी-अभी हम-तुम यहीं खेलकर जवां हुए, न जाने हम कैसे ¨हदू तुम मुस्लमां हो गए। पूर्व मिसाइ
समस्तीपुर। अभी-अभी हम-तुम यहीं खेलकर जवां हुए, न जाने हम कैसे ¨हदू तुम मुस्लमां हो गए। पूर्व मिसाइल मैन डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने कल्याणपुर क्षेत्र के जनता चौक निवासी धीरेंद्र कुमार धीरज की इस रचना को राष्ट्रपति ने सराहा था। राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय प्रांगण पूसा में 14 फरवरी 2004 को अपनी व्यक्तिगत इच्छा पर बुलाकर उन्हें सम्मानित भी किया था। यह हौसला धीरज को शिक्षा के क्षेत्र में इतना ऊंचा उठाया कि उक्त छात्र एमए भूगोल से अच्छे अंकों से उर्तीण होकर आज राजकीय उच्चतर बुनियादी विद्यालय जर्नादनपुर में शिक्षक के पद पर पदासीन कर दिया। धीरेंद्र बताते हैं कि बचपन से ही मुझे कविता की रचना करने में मन लगता था। एक रचना मैंने महामहिम को भेजी। मुझे जानकारी थी कि राष्ट्रपति महोदय का लगाव छात्रों से अधिक रहता है। मेरी यह सोच निर्मुल न हुई। वे एक सच्चे इंसान लगे। मानवता के सही पुजारी थे। स्थानीय जिला प्रशासन ने जब मेरे घर आकर अचानक मुझे अपनी गाड़ी पर बैठाकर पूसा विश्वविद्यालय प्रांगण में ले गए मुझे एहसास हुआ कि सही में वे महान थे। वहां उन्होंने मुझे सम्मानित भी किया।