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तंबाकू की खेती से किसान विमुख

शाहपुरपटोरी, संस : पटोरी और इसके आसपास के क्षेत्र में अब तम्बाकू की खेती पर ग्रहण लग गया है। अभाव

By Edited By: Published: Mon, 09 Mar 2015 07:55 PM (IST)Updated: Mon, 09 Mar 2015 07:55 PM (IST)

शाहपुरपटोरी, संस : पटोरी और इसके आसपास के क्षेत्र में अब तम्बाकू की खेती पर ग्रहण लग गया है। अभावग्रस्त किसान तम्बाकू की खेती से विमुख होते जा रहे हैं। प्रतिकूल मौसम, खेतिहर मजदूरों की कमी, मंहगाई तथा कृषि व सामग्रियों की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि से किसानों में इस प्रमुख व्यवसायिक फसल के प्रति उदासीनता बढ़ गई है। विगत कुछ वर्षों में इस फसल के उत्पादन एवं इस पर आधारित उद्योग धंधों की कमर टूट चुकी है। बनारस का जर्दा हो या कानपुर का पान मसाला, पटोरी की तम्बाकू पत्तियों के बिना इसके तीखे तेवर अब ठंडे पड़ने लगे हैं। एक समय इस क्षेत्र का चयन अंग्रेजों ने विश्वस्तीय तम्बाकू उत्पादन की ²ष्टि करते हुए यहां कई मिले स्थापित की थी, किन्तु अब इसकी स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है।

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मजदूरों की कमी से किसान बेहाल

तम्बाकू उत्पादकों का मानना है कि अब क्षेत्र में कृषि कार्य के लिए उपयुक्त मजदूर नहीं मिलते। अत: इसकी खेती काफी खर्चीला हो गया है। मजदूरों को सरकारी स्तर पर काम मिलने तथा शेष मजदूरों के पलायित होने से मजदूरों की किल्लत हो गई है। इसके अलावे पटवन से लेकर उर्वरक और जैविक खाद की कीमतों में हुई वृद्धि ने किसानों की कमर तोड़ दी है। जिससे इसकी खेती पर बुरा प्रभाव पड़ा है।

अन्य राज्यों में पहुंचता था पटोरी का तंबाकू

यहां के उत्पादित तम्बाकू को विभिन्न मिलों में उपचारित कर उसकी पत्तियों, चूर्ण व अन्य उत्पादों को उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, दिल्ली, झारखंड व छतीशगढ़ आदि प्रदेशों में भेजा जाता है। अब इसकी मात्रा काफी घट गई है। अच्छे-अच्छे तम्बाकू उत्पाद कंपनियों के द्वारा आज भी यहीं से तम्बाकू मंगवाये जाते है।

ब्रिटिश जमाने से चल रहा तम्बाकू उद्योग

तम्बाकू की विश्वस्तरीय प्रजाति के उत्पादन के लिए अनुकूल क्षेत्र माने जाने के बाद ब्रिटिश शासक आईएलटीडी कंपनी की स्थापना पटोरी में की थी तथा 1890 ई. में वर्जिनिया सिगरेट फैक्ट्री की स्थापना कर उत्पादित सिगरेटों को फ्रांस व इंग्लैण्ड भेजा करते थे। जिसके दिवाने कई देश बन गये।

नहीं मिलती सरकारी सुविधा

इसकी खेती के लिए किसानों को सरकारी सुविधाएं प्रदान नहीं की जाती। किसान अपने बूते इसकी खेती करते हैं और मौसम ने दगा दे दिया तो इसका घाटा भी किसान स्वयं उठाते हैं। इसकी खेती से विमुख होने का कारण यह भी है।

आंकड़ों में तंबाकू की खेती

वर्ष एकड़

2009 550

2010 432

2011 387

2012 350

2013 330

2014 321


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