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आब एक तारीख के कैय दैतेय टका हो..

सहरसा। आब एक तारीख के कैय दैतेय टका हो..यह कहते-कहते चीत्कार करने लगता है शहीद

By Edited By: Published: Mon, 16 Jan 2017 06:21 PM (IST)Updated: Mon, 16 Jan 2017 06:21 PM (IST)
आब एक तारीख के कैय दैतेय टका हो..
आब एक तारीख के कैय दैतेय टका हो..

सहरसा। आब एक तारीख के कैय दैतेय टका हो..यह कहते-कहते चीत्कार करने लगता है शहीद संजीव का छोटा भाई सुविन। सोमवार की सुबह 9.35 बजे जैसे ही शहीद जवान संजीव कुमार का शव लाया गया वहां चीख पुकार मच गयी। हर कोई दहाड़ मारकर रो रहा था। घर की महिलाएं ही नहीं आस-पड़ोस गांव से जुटे हजारों की आंखें नम हो गयी। घर में छोटा भाई सुविन कुमार अपने भाई शहीद के शव देखते ही वह बिलख-बिलख कर रोने लगा। बिलखते हुए एक ही रट लगाता रहा है कि आखिर अब उसे एक तारीख को कोन टका- रुपैया दैगा? हर एक तारीख को रूपया मिलता था। कैसे होगी आगे की पढ़ाई। दसवीं वर्ग का छात्र सुविन दो भाईयों में छोटा था। बड़ा भाई भारतीय सेना में राष्ट्रीय राइफल का जवान था। घर में पिता किसान थे। घर का एकमात्र कमाऊ पुत्र था जो सदा के लिए छोड़ कर चला गया। घर में परिजनों की चीख-पुकार सुन हर कोई उसे संभालने में ही लगे थे। लेकिन संभालने वाला हर कोई के आंखों में आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा था।

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गुमसुम था चार माह का दिव्यांशु

पत्नी आशा देवी बार-बार बेहोश हो रही थी। जिसे घरवाले पानी का छींटा देकर होश में लाने की कोशिश में जुटे रहे। इधर गोद में चार माह का पुत्र दिव्यांशु गुमसुम था। उसे क्या पता कि उसके सिर से आज पिता का साया उठ गया। हर कोई मासूम को देख भगवान को कोस रहा था कि आखिर इस मासूम ने क्या बिगाड़ा था जिसके सिर से पिता का साया उठ गया।


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