मंदिर फार्मेट पर लगाएं:अज्ञातवास में पांडवों ने की थी मां चंडी की पूजा
सुनील सम्राट, सोनवर्षा (सहरसा), : कई रहस्यों को खुद में समेटे राजा विराट की धरती पर स्थित मां चंडी क
सुनील सम्राट, सोनवर्षा (सहरसा), : कई रहस्यों को खुद में समेटे राजा विराट की धरती पर स्थित मां चंडी की पूजा करने श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। यहां की प्रतिमा व मंदिर पर लोगों की जबरदस्त आस्था है।
अज्ञातवास में पांडवों ने की थी पूजा
यह बात भी चर्चित है कि महाभारत काल में जब पांडवों को आज्ञातवास हुआ था तब पांडव राजा विराट के यहा थे एवं प्रतिदिन मां चण्डी की पूजा अर्चना करते थे। दूसरी बात यहां यह है कि बंगाल सहित कई राज्यों में पालवंश का शासन था। इसी वंश के प्रतापी राजा गोपाल जी भी मां चण्डी के परम भक्त थे। हालांकि वो बौद्ध धर्म से भी उनको लगाव था। उन्होंने ही मां चण्डी के बगल में बौद्ध धर्म के मारीच जी की प्रतिमा भी स्थापित करवायी थी। मां चण्डी के बगल में मां दुर्गा, मारीच जी एवं मां काली की प्रतिमा स्थापित है। बंगाल के एशियाटिक सोसाईटी के द्वारा 1872 में सर्वे कराया गया था। जिसमें यहां शिलालेख पर प्रकृति लिपि में कुछ लिखे पाए गये। जिसे बनारस संस्कृत महाविद्यालय के विद्वानों द्वारा पढ़ा गया। जिस पर लिखा था कि 1097 से 1325 मे सर्व सिंह देवा मां को पुष्प अर्पित करते थे।
रानी दुलारी ने कराया था मंदिर निर्माण
बाबू भीम सिंह जो गनवरिया राजपूत के राजा थे। उनकी बहू जलसीमा रानी दुलारी देवी द्वारा मंदिर का भव्य निर्माण कराया गया था एवं विधिवत आज तक पूजा होती आ रही है। मां की प्रतिमा कितनी गहराई में है। इसके भी ठोस प्रमाण नही मिल पाया है। कई बार पुरातत्व विभाग द्वारा इसका प्रयास किया गया लेकिन सफलता नहीं मिली। वहीं मां चण्डी विकास समिति के अध्यक्ष परमानन्द सिंह, सचिव मदन सिंह, बच्चा दास आदि की मानें तो मां की महिमा अपरंमपार है एवं इस दरबार से कोई भी भक्त आज तक खाली नहीं लौटा है।
माण्डवी चण्डी महाविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर संतोष कुमार सिंह के मुताबिक जो भक्त मां चण्डी के चरणों में जल चढ़ाते है। वह जल मां चण्डी के अलावे सहरसा के महिषी स्थित मां तारा एवं धमहरा घाट स्थित मां कात्याणी दोनों को अर्पित होता है। कहा जाता है कि मां चण्डी, मां तारा एवं मा कात्याणी तीनों की समान दूरी है। बिल्कुल गणित की त्रिभुज की तरह।