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'दुख में त्याग और सुख में जरुरी है सेवा'

By Edited By: Published: Sun, 20 Jul 2014 06:08 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jul 2014 06:08 PM (IST)
'दुख में त्याग और सुख में जरुरी है सेवा'

सहरसा, जासं : रविवार को गायत्री शक्तिपीठ में साप्ताहिक युवा गोष्ठी का आयोजन किया गया।

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गोष्ठी को संबोधित करते हुए ट्रस्टी डा. अरुण कुमार जयसवाल ने कहा कि श्रावण, श्रवण माह है। इस माह में सुनने का महिमा है। दरअसल न मन सुनता है, और न कान, बल्कि श्रवण तो हृदय करता है। उन्होंने कहा कि देवशयन एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक चार महीना अन्तमुर्खी साधना का मास है। पुण्य अगर क्षय हो रहा है, तो कभी न कभी दुख अवश्य आयेगा। इसलिए दुख के समय त्याग और सुख के समय सेवा करनी चाहिए। ज्ञानीजन इसके लिए प्रायश्चित करते हैं। प्रायश्चित पापों के क्षय का विधान है। प्राश्यचित हमारी संस्कृति है। साधना में सबसे उच्चस्तरीय साधना श्रवण, मनन और निशिध्यासन है।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में गरीबों के बीच वस्त्र बांटा गया। इस अवसर पर मुख्य ट्रस्टी प्रकाश लाल दास, केदारनाथ टेकरीवाल, भगत मोहन, शंभु जयसवाल, हरीश जयसवाल, मुरलीमनोहर गनेरीवाल, दिलीप चौधरी, विनोद चौधरी, सुबोध भगत, संजय यादव, ललन कुमार सिंह, हरेकृष्ण साह, श्यामानंद लाल दास आदि मौजूद रहे।


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