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स्पीडी ट्रायल : पांच साल में भी नहीं मिला न्याय

जघन्य कांडों में अभियुक्तों को त्वरित सजा दिलाने के लिए स्पीडी ट्रायल की व्यवस्था की

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jul 2017 03:09 AM (IST)Updated: Thu, 20 Jul 2017 03:09 AM (IST)
स्पीडी ट्रायल : पांच साल में भी नहीं मिला न्याय
स्पीडी ट्रायल : पांच साल में भी नहीं मिला न्याय

रोहतास। जघन्य कांडों में अभियुक्तों को त्वरित सजा दिलाने के लिए स्पीडी ट्रायल की व्यवस्था की गई है। जहां अनुसंधान अधिकारी से ले न्यायाधीश तक मुकदमे का त्वरित निष्पादन करते-कराते हैं, लेकिन जिले में चल रहे स्पीडी ट्रायल का सच यह है कि गत पांच साल में न तो अपराधियों को सजा मिल पाई है, न पीड़ित को न्याय। वर्तमान में स्थानीय व्यवहार न्यायालय में स्पीडी ट्रायल के लिए 145 मुकदमें अभी भी लंबित हैं। जिसमें हत्या, दुष्कर्म, नक्सल घटनाएं समेत अन्य आपराधिक वारदातों से संबंधित वाद शामिल हैं। इन मुकदमों में तब स्पीडी ट्रायल के तहत अभियुक्तों को कठोर सजा दिलाने के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए थे। लेकिन हकीकत कुछ और ही है।

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सबसे ज्यादा निम्न न्यायालयों में लंबित :

स्पीडी ट्रायल के लिए 145 लंबित मुकदमों में सर्वाधिक मामले दंडाधिकारियों के न्यायालय में चल रहे हैं। सूत्रों के अनुसार 55 वाद सिर्फ दंडाधिकारी के न्यायालय में, वहीं सत्र न्यायाधीशों के यहां 36 वाद लंबित हैं। जबकि 23 मामले नक्सलवाद व 31 मुकदमें उच्च न्यायालय के निर्देश पर चल रहे हैं। स्पीडी ट्रायल मुकदमों में छह वर्ष से लंबित सत्र वाद संख्या 501/11 सबसे पुराना मुकदमा है, जो विस्फोटक पदार्थ अधिनियम से जुड़ा है। यह मुकदमा पुलिस द्वारा जमुहार गांव से बरामद विस्फोटक के आधार पर दर्ज किया गया था। जिसमें दर्जन भर गवाह पुलिस-प्रशासन से जुड़े लोग हैं। एडीजे चार की अदालत में लंबित इस मुकदमें में तीन वर्ष पूर्व आरोप पत्र न्यायालय में दायर करने के बावजूद अब तक एक भी गवाह की गवाही नहीं हो सकी है। जबकि न्यायालय द्वारा गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने के लिए बार-बार सम्मन व वारंट जारी किया जा चुका है।

नक्सली कांडों से जुड़े मामले भी लंबित :

स्पीडी ट्रायल के लंबित मामलों में नक्सली कांड से जुड़े वाद भी हैं। एडीजे चार के न्यायालय में लंबित मुकदमों में से एक वाद नवंबर 2011 का है। जिसमें पुलिस ने करकटपुर में छापेमारी कर भाकपा माओवादी दुलारचंद को गिरफ्तार किया था। इस वाद में भी सभी गवाह पुलिसकर्मी ही हैं। जिससे एक भी गवाहों की गवाही नहीं हो सकी है। जबकि न्यायालय द्वारा एसपी, एसडीपीओ व थानाध्यक्षों को गवाहों को उपस्थित कराने का कई बार निर्देश दिया जा चुका है। वहीं 2010 का एक आ‌र्म्स एक्ट से जुड़ा मामला दंडाधिकारी के न्यायालय में गवाह का इंतजार कर रहा है।

कहते हैं लोक अभियोजक :

लोक अभियोजक चंद्रमा ¨सह व डीपीओ अवधेश कुमार की मानें तो न्यायालय इन मुकदमों के त्वरित निष्पादन को ले गंभीर है। गवाहों की उपस्थिति के लिए नियमानुसार प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है। न्यायालय के अलावा हम भी अपने स्तर से पत्र लिख सूचित करते हैं। लेकिन गवाहों के नहीं आने से मुकदमे लंबित हैं।


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