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लुप्त हो रही 'दो हद' की परंपरा

By Edited By: Published: Fri, 06 Jan 2012 07:18 PM (IST)Updated: Fri, 06 Jan 2012 07:19 PM (IST)

ब्रजेश पाठक, सासाराम

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नारी सदियों से पूजनीया रही है। वह शक्ति स्वरूपा है। कुछ समय तक 'दो हृदया' होती है। उस मौके पर देखभाल की अवस्था को 'दोहद' के नाम से जाना जाता है। दो हृदया नारी की घर परिवार में ना केवल आकांक्षाओं की पूर्ति होती थी, बल्कि उसे पर्याप्त प्यार, आदर भी प्राप्त होता था। प्रचलित लोकगायन में इस परंपरा की झलक मिलती है। अब लोगों की सोच बदलने से न केवल नारी सम्मान में कमी आई बल्कि भू्रण हत्या का प्रचलन भी बढ़ा है। जिससे लिंगानुपात में कमी व शिशु मातृत्व मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।

नारी जब गर्भ धारण करती है तो माना जाता है कि वह दो हृदय वाली होती है। एक उसका हृदय व दूसरा उस बच्चे का हृदय जो पेट में पल रहा है। 82 वर्षीया सविता कुंअर कहती हैं कि पेट में बच्चा के रूप में बेटा पले या बेटी इससे कोई फर्क नहीं था। गर्भवती महिलाओं के घर में सास-ससुर से लेकर जेठ, देवर तक ख्याल रखते थे। ऐसी महिलाओं को मनपसंद भोजन, वस्त्र, घूमने वाले स्थान पर जाने की इच्छा होने पर घर परिवार के लोग पूर्ति करते थे। रघुवंश महाकाव्य के तृतीय सर्ग में महाकवि कालीदास ने राजा दिलीप को अपनी पत्‍‌नी सुदक्षिणा के गर्भ काल के समय यानी दोहद का वर्णन किया है। इस अवस्था में स्त्रियों की देखभाल व परिवार का संस्कार शिशु पर पड़ने की बात कही गयी है। कई ग्रंथों में वृक्षों में भी दोहद की बात कही गयी है। जहां स्त्री को सम्मान प्राप्त होने से वे पुष्पाल्लवित होने लगते थे। इतिहासवेत्ता डा. श्याम सुंदर तिवारी की माने तो लोक संस्कृति में 'दोहद' काफी प्रचलित था। भोजपुरी संस्कृति में कई लोकगीत दोहद या साध गीत के रूप में है, जो सोहर छंद में है। आज भी गांव की वृद्ध महिलाएं अपने बहुओं को गर्भावस्था में काफी मान सम्मान देती हैं। दोहद वृक्षों में भी होता है। नैषधिय चरित में महिलाओं द्वारा वृक्षों को अंकवार देने की बात कही गयी है। आम दोहद, अशोक दोहद, मंदार दोहद आदि का वर्णन है।

धर्म संस्कृति के जानकार प्रो. डा. नंदकिशोर तिवारी मानते हैं कि 'दोहद' के समय स्त्रियों में मान सम्मान में कमी से भू्रण हत्या बढ़ा है। जैसे ही यह पता चलता है कि महिला के पेट में पल रहा शिशु 'बेटी' है तो उसका मान सम्मान कम होने लगता है। अगर दोहद के समय महिलाओं को उचित सम्मान मिले तो आने वाली पीढ़ी निश्चित रूप में संस्कारवान होगी।

जिले में शिशु मातृत्व मृत्यु दर

लक्ष्य उपलब्धि

* शिशु 45 52 (प्रति हजार)

* मातृत्व 200 312 (प्रति लाख)

* औसत आयु : 64

* टीकाकरण 56000 41112

* लिंगानुपात 914 प्रति हजार

* प्रजजन दर 2.1 4

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