इन्द्र ने की थी 'सिंहारूढ़ अष्टभुजी' की स्थापना
निज प्रतिनिधि, संझौली (रोहतास) : रोहतास शक्ति उपासना के लिए प्रसिद्ध रहा है। लौकिक व पारलौकिक सुखों की प्रप्ति हेतु न सिर्फ ऋषियों ने यहां शक्ति की उपासना की थी, बल्कि देवताओं ने भी शक्ति के दर्शन को वर्षो तपस्या की है। दिनारा प्रखंड के कंचन नदी के किनारे स्थित यक्षिणी भवानी (भलुनी धाम) शक्ति उपासना का ऐसा पवित्र स्थल है, जहां ऋषि-मुनियों के अलावे देवताओं ने भी मां की आराधना की थी। महर्षि विश्वामित्र ने भी मां का साक्षात दर्शन पाया था। भगवान इन्द्र के एक लाख वर्ष तपस्या के पश्चात मां के लौकिक रूप का दर्शन हुआ था। विश्वामित्र के साथ बक्सर गमन के समय प्रभु श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ यहां रात्रि विश्राम किए थे। जिले के सांस्कृतिक व पुरातात्विक विषयों के जानकार डा.श्याम सुदंर तिवारी की मानें तो भगवान इन्द्र को मां ने 'सिंहारूढ़ अष्टभुजी' के रूप में दर्शन दिया था और उन्हीं की प्रेरणा से स्वयं इन्द्र ने मां को अष्टभुजी के रूप में स्थापित किया था। नवरात्रि में यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है। बिहार के अलावे दूसरे प्रदेश से भी दर्शनार्थी मां के दर्शन हेतु आते हैं। वैसे वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। वर्ष 1812 में यहां आप फ्रांसीसी सर्वेवर बुकानन ने तो मां यक्षिणी भवानी के विषय में लिखा है कि यहां मुख्य मंदिर काली का है। बुकानन को मां का 'विग्रह' अष्टभुजी देवी के रूप दिखाई दिया था। 'द सर्वे आफ दी डिस्ट्रीक शाहाबाद में लिखा है कि यक्षिणी भवानी में लोगों की अपार आस्था है। 'मां' के पूजा किये बिना लोग यहां कोई शुभ कार्य नहीं करते हैं। अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों का भी मां में गहरा विश्वास है। वे भी यहां माथा टेकने आते हैं। नदी की मनोरम लहरें और लहलहाते पेड़ पौधे जैसे मां की ध्यानार्थ खुद को पाते हैं। जंगल में विचरित बंदर व भालू जैसे मां की रखवाली में नित्य लगे हैं। उस वक्त गुंबदकार मंदिर था। जिसमें पश्चिम में भैरव, बीच में यक्षणी व भवानी व पूरब में शिवमंदिर हैं। जिला मुख्यालय से 50 किमी. की दूरी पर स्थित इस ऐतिहासिक मंदिर में दिनारा या बिक्रमगंज से जाना पड़ता है। मंदिर नटवार बाजार से चार किमी. की दूरी पर स्थित है।
पर्यटन केन्द्र बन सकता है:- यक्षणी भोजपुरी साहित्य समिति अध्यक्ष कन्हैया पंडित का कहना है कि अति प्रचीन मंदिर का विकास पर्यटन की दृष्टि से किया जाए तो यह नि:संदेह एक आकर्षक पर्यटन स्थल बन सकता है। वैसे पर्यटन विभाग ने एक करोड़ छह लाख रूपऐ की राशि दी थी। जिससे अभी भी विकास कार्य कराना बाकी है। फिर भी इसे और अधिक संवारने की जरूरत है। मंदिर के समीप जंगल काटे जा रहे हैं। तालाब की साफ-सफाई नहीं है। जंगल में विचरित बंदरों की संख्या भी काफी कम हो गई है। भालू तो समाप्त हो चुके हैं। ग्रामीण हर्षनाथ पांडेय (अधिवक्ता) बताते हैं कि अगर ध्यान नहीं दिया गया, तो यहां का आकर्षण धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। मंदिर की देख-रेख बडीहा, सरीका व भलूनी के पंडा करते हैं। गोसलडीह (सूर्यपुरा) निवासी श्री भगवान सिंह बताते है कि चार दशक पूर्व यहां के मेले में कोलकत्ता, बम्बई, गुजरात तक के बड़े व्यापारी आते थे। क्षेत्र के लोग पूरे साल की घरेलू सामग्री यहां से खरीदते थे। इतना ही नहीं राज्य के अन्य शहरों के व्यापारी भी उनसे थोक सामग्री की खरीदारी करते थे।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर