योजनाएं नहीं कर पा रही कल्याण, किसानों का सहारा भगवान
पूर्णिया[मनोज कुमार]। भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसानी बदतर हालात में हैं। सरकार की योज
पूर्णिया[मनोज कुमार]। भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसानी बदतर हालात में हैं। सरकार की योजनाएं भी कृषि क्षेत्र में अनिश्चितताओं का समाधान नहीं कर पाई है। 21 वीं सदी में भी किसानों को भगवान का ही सहारा है। हर साल प्रकृति का प्रकोप कृषकों को खोखला कर रही है। आर्थिक खोखलापन किसानों को आत्महत्या की दहलीज तक ले जा रहा है या फिर दूसरा पेशा अपनाने को विवश कर रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की दुर्दशा से उबारने का संकल्प लिया है।
किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने फसल बीमा योजना की शुरुआत की है लेकिन इसकी रफ्तार इतनी धीमी है कि अभी भी ये धरातल पर नहीं उतर पाई है। जिले के 6 लाख किसान आज भी प्रधानमंत्री फसल बीमा का इंतजार कर रहे हैं। सहकारिता विभाग के एमडी बिरेंद्र ठाकुर कहते हैं कि पूर्व की बीमा योजना का लाभ किसानों को दिया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 14-15 के लिए 84,36,558 रुपये का बीमा लाभ किसानों को दिया गया है। वे कहते हैं कि बीमा की राशि करेंट वर्ष में दिए जाने से किसानों को अधिक लाभ मिलेगा। उन्होंने बताया कि किसानों में जागरूकता आई है तथा अब वे वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने लगे हैं। धीरे-धीरे उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है।
जिले में 6 लाख किसान करते हैं खेती--
करीब 25 लाख की आबादी वाले जिले में करीब एक चौथाई लोग किसानी पर आधारित हैं। यद्यपि विभिन्न पैक्सों से जुड़े किसानों की संख्या 3,20,976 है तथा कृषि विभाग की एमआइ पोर्टल पर सिर्फ 78,566 किसान निबंधित हैं। लेकिन वास्तविक किसानों की संख्या 6 लाख से अधिक है। किसानों को न तो सरकार की योजनाओं का पर्याप्त लाभ मिल पर रहा है और न ही उनकी उपज का लागत मूल्य मिल रहा है जिस कारण किसान लगातार कर्ज तले दबे जा रहे हैं और किसानी छोड़ने को विवश हो रहे हैं।
व्यवस्थागत कमी से पिछड़ रहे किसान--
जिले में नदियों का जाल बिछा है फिर भी आधी से अधिक खेती लायक भूमि ¨सचाई से वंचित हैं। सरकार की ओर से ¨सचाई के लिए कई योजनाएं चला रखी है लेकिन सभी बदहाल हैं। जिले में चप्पे चप्पे पर नहरें बिछाई गई थी तथा 4 लाख 95 हजार हेक्टेयर भूमि को ¨सचित करने का लक्ष्य रखा गया था। परंतु बाढ़ ने नहर व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। वही सरकार चापानल देख रेख के अभाव में खराब हो गये। उद्ववह ¨सचाई योजना भी लक्ष्य तक नहीं पहुच पाई। यानि सिचाई के सरकारी संसाधन यहां ध्वस्त हैं। सरकार डीजल अनुदान देकर किसानों की ¨सचाई की जाने वाली अतिरिक्त खर्च की भरपाई करने की कोशिश करती है पर व्यवस्थागत दोष के कारण वह भी उन तक नहीं पहुच पाती है।
प्राकृतिक प्रकोप तोड़ देती है किसानों की कमर--
नदियों से जितना लाभ किसानों को नहीं मिलता है उससे अधिक वह नुकसान पहुंचा जाती है। यहां की कोसी, महानंदा, बकरा, नूना, परमान आदि दर्जन से अधिक नदियां हर साल खेतों में लगी फसल के साथ किसानों का माल असबाब अपने साथ बहा कर ले जाती है। प्रकृति का दूसरा बड़ा प्रकोप आंधी, बारिश और ओला वृष्टि के रूप में आती है। हर साल किसानों की करोड़ों की फसल प्रकृति की भेंट चढ़ जाती है जिसका कोई समाधान अभी तक सरकार नहीं ढूंढ सकी है।
नहीं मिलता है लागत मूल्य--
महंगी बीज, खाद और पानी लगाकर किसान फसल उगाते हैं लेकिन बाजार पहुंचने पर उसका लागत मूल्य भी वसूल नहीं हो पाता है। बाजार पर सरकारी नियंत्रण के अभाव के कारण किसानों का संगठित व्यापारियों द्वारा शोषण किया जाता है। फसल की कटाई के वक्त ¨जस का भाव बाजार में गिर जाता है फिर वही फसल बाद के माह में दूने दाम पर व्यापारी बेचते हैं।