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मंदिरों-मस्जिद की या किसी इमारत की, माटी तो लगी उसमें भाई मेरे भारत की..

मंदिरों-मस्जिद की या किसी इमारत की, माटी तो लगी उसमें भाई मेरे भारत की, लहू था हिन्दू का

By Edited By: Published: Sun, 29 May 2016 09:57 PM (IST)Updated: Sun, 29 May 2016 09:57 PM (IST)
मंदिरों-मस्जिद की या किसी इमारत की, माटी तो लगी उसमें भाई मेरे भारत की..

मंदिरों-मस्जिद की या किसी इमारत की, माटी तो लगी उसमें भाई मेरे भारत की, लहू था हिन्दू का अल्लाह शर्मिंदा रहा, मरा जब मुसलमान तो राम कब ¨जदा रहा। देश दुनिया में अपनी अलग छाप छोड़ने वाले कवि पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा ने उक्त पंक्ति पेश की तो इंसानियत को झकझोर देने वाली इस पंक्ति ने जहां हजारों दिलों को बेचैन कर दिया। तो वहीं अपनी डफली-अपना राग अलापते हुए धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों का भी ब्रेन वॉश हो गया। मौका था दैनिक जागरण द्वारा कला भवन में शनिवार की संध्या आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का। कवि सुरेंद्र शर्मा अपने जाने पहचाने अंदाज में जहां पत्नियों के प्रेम को बड़े ही भोले भाले अंदाज में प्रस्तुत कर लोगों को ठहाका लगाने पर मजबूर कर दिया, तो वहीं हंसी-हंसी में इतनी गहरी बातें कह गए कि लोग ठहाकों के बीच गहरी सोच में डूबने को भी मजबूर हो गए। वर्तमान पीढ़ी के युवाओं के रवैये पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा ¨पहले दरबाजे पर लोग बुजुर्ग को रखते थे ताकि घर में कोई कुत्ता न घुसे, अब लोग दरबाजे पर कुत्ता रखते है ताकि बुजुर्ग घर में न घुसे। वही उन्होंने अपने चिरपरिचित कविता Þ हम किस पर कविता लिखे - जहां तेरा वजूद किस्तों में बिकता है, अरे बाबला है तू जो कविता लिखता है, लिखना ही है तो गरीबी के लिए लिख, महंगाई के लिए लिख, बेकारी के लिए लिख, अगर बच गया तो कविता लिख। वहीं वीर रस के कवि हरिओम पवार ने जैसे ही माइक कर अपनी कविता घायल भारत मां की तस्वीर दिखाने आया हूं शुरू की पूरे सदन में तालियों की बौछार होने लगी। वही उन्होंने जब अपनी कविता Þ मैं भी गीत लिख सकता हूं शबनम की अभिनंदन के, मैं भी ताज पहन सकता हूं नंदन वन के चन्दन की, लेकिन जबतक पगडंडी से लेकर सांसद तक कोलाहल है तबतक गीत लिखूंगा जन मन गण के क्रन्दन की Þ पूरा कला भवन तालियों के गड़गड़ाहट गूंज उठा। वही उन्होंने जब अपनी प्रसिद्ध कविता ये पाकिस्तानी गालों पर दिल्ली के तमाचे होते गर हमने भी दो के बदले 20 शीश काटे होते सदन में रखी पूरी महफिल खड़े होकर उनके अभिनंदन में तालियों की बौछार कर दी। वही मंच का संचालन कर रहे कवि गजेन्द्र सोलंकी ने शुरुआत में ही श्रोताओं ले दिलों में अपनी जगह बनाते हुए कहा कि कल मिले न मिले प्यार गवाही के लिए, कल उठे न उठे हाथ सुराही के लिए, आज की शाम को रंगीन बना ले इतना की कोई कोना न बचे रात की सिहायी के लिए। वही इनकी दूसरी कविता युगों-युगों तक इस धरती पर भारत मां की शान रहे, राम, कृष्ण, गौतम की वंशज वाली ये पहचान रहे, रामायण, गीता, कुरान, गुरुग्रंथ साहिब हो होठों पर, लेकिन सबसे पहले हर एक दिल में हिन्दुस्तान रहे। वही श्रृंगार रस की कवयित्री सुमन दुबे ने जब अपनी रचना Þगीत गा-गा कर दुनिया का मन रख लिया, इस कदर काटों ने हमे चुभायें गए की मैंने नाम अपना सुमन रख दिया।


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