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मुसीबतों ने सिखाया जीना चीर रही नदियों का सीना

पूर्णिया। आवश्यकता आविष्कार की जननी और मुसीबत सबसे बड़ी पाठशाला होती है। इसे सच होता देख

By Edited By: Published: Tue, 26 Jul 2016 03:05 AM (IST)Updated: Tue, 26 Jul 2016 03:05 AM (IST)

पूर्णिया। आवश्यकता आविष्कार की जननी और मुसीबत सबसे बड़ी पाठशाला होती है। इसे सच होता देखा जा सकता है जिले के बाढ़ प्रभावित इलाकों में। प्रभावित इलाकों में ¨जदगी से चल रही जंग का जो नजारा दिखता है तो यह यहां के लोगों की जीवटता का परिचय देता है। महिलाएं नाव चलाने में इतनी दक्ष हो सकती इसका नमूना यहां आम बात है। केले के थंब को जोड़कर जब ये सैलाब को टक्कर देने निकलती हैं तो एनडीआरएफ की टीम भी हैरान हो जाती है। घर में प्रयुक्त बर्तनों के सहारे अगर नदी पार करना हो तो इनसे सीखने जरूरत महसूस की जा सकती है। हर साल मुसीबत जिस तरह से जीना सिखा देती है कि बाढ़ के समय में नदियों का सीना चीरने से ये जरा भी नहीं हिचकती है।

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जिले के खासकर बायसी अनुमंडल का बायसी, अमौर और बैसा तथा धमदाहा अनुमंडल का रूपौली प्रखंड बाढ़ प्रभावित प्रखंड हैं। हर साल यहां बाढ़ आती है इलाके को तहस-नहस कर जाती है। इन प्रखंडों में महानंदा, परमान, कनकई और कोसी नदी का कहर हर साल टूटता है। अभी यहां लाखों ¨जदगानी बाढ़ से दो-दो हाथ कर रही है। नदियों के उफान का हालत यह है कि जलालगढ़, कसबा सहित निगम क्षेत्र के कई इलाकों में बाढ़ का पानी घुस गया है। सड़कें कट रही हैं, घर नदी में समा रहा है। लहलहाती फसलें देखते-देखते विलीन हो जाती है। लाख सरकारी उपाय किये जा रहे हों लेकिन प्रभावित इलाकों में लोगों की जान सांसत में है। फिर भी लोग साहस का परिचय देते हुए बाढ़ का सामना करने में जुटे हैं।

दरअसल प्रभावित इलाकों के लोगों नदियों की हर हलचल से वाकिफ होते हैं। पानी का रंग देखकर पता लगा लेते हैं कि बाढ़ आनेवाली है। बायसी हरिणतोड़ गांव के टुप्पा टोला, मस्जिद टोला में बाढ़ का पानी लोगों के नाक में दम कर रखा है। स्थानीय पवन कुमार बताते हैं कि अगर लोग सिर्फ सरकार के भरोसे रहे तो समस्या विकट हो जाएगी। यहां लोग पानी देखकर पता लगा लेते हैं कि बाढ़ आनेवाली है। बाढ़ से पहले पानी का रंग बदल जाता है। जब यह गहराने लगता है तो लोग समझ जाते हैं या तो बाढ़ आनेवाली है या जलस्तर में वृद्धि होगी। इस तरह के हालात होते ही लोग बाढ़ की तैयारी में जुट जाते हैं। घर के सभी सामान की तैयारी उस ढंग से की जाती है कि ले जाने में समस्या नहीं आए। लोग केला के पौधे काटकर जमा कर लेते हैं जो जान बचाने के काम आता है। केले के थंब को जोड़कर नाव बना लेते हैं और उसपर सवार होकर खतरा मोल लेकर जान बचाते हैं। कहा कि घरों के बर्तनों का भी उपयोग लोग नाव के तौर पर करते हैं। मवेशी चारा वगैरह लाने के लिए लोग हंडी को औंधा कर उसपर चारा डालकर ले आते हैं। उन्होंने कहा कि अभी कई जगहों पर नाव की कमी महसूस की जा रही ऐसे में केला की नाव लोगों की जीवनरक्षक बनी है।


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