यहां पानी से ही है मछलियों को खतरा, जानिए
कहा जाता है मछली जल की रानी है। जीवन उसका पानी है। लेकिन मछली से पहचाने जाने वाले कोसी की मछलियों को यहां की पानी से ही खतरा है। इसकी वजह है पानी में आयरन की मात्रा अधिक होना।
पूर्णिया [राजेश कुमार]। पान, माछ (मछली) और मखान से पहचाने जाने वाले कोसी इलाके के पानी से ही मछलियों को खतरा है। कहा जाता है कि मछली जल की रानी होती है। उसका जीवन पानी के बिना संभव नहीं है। लेकिन कोसी में पानी से मछलियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। यहां के पानी में आयरन की अधिक मात्रा है। इस कारण इसमें मछलियों के अंडे निषेचित नहीं हो पाते हैं।
बाजार पर आंध्र प्रदेश की मछलियों का कब्जा
पानी खराब होने के कारण ही मत्स्यपालक यहां हैचरी नहीं खोलना चाहते हैं। मछली पालन के लिए अंगुलिकाएं (मछलियों के बच्चे) यहां पश्चिम बंगाल से मंगाई जाती हैं। यहां के बाजार पर आंध्र प्रदेश की मछलियों का कब्जा रहता है।
महंगी पड़ती हैं बंगाल की अंगुलिकाएं
पूर्णिया बंगाल का सीमावर्ती इलाका पड़ता है। इस कारण यहां पश्चिम बंगाल से अंगुलिकाओं को लाने में अधिक खर्च नहीं होता है। सहरसा, मधेपुरा व सुपौल जिले की दूरी अधिक होने के कारण इन अंगुलिकाओं का खर्च बढ़ जाता है। लाने में अधिक समय लगने के कारण इन जिलों में पहुंचने से पहले ही काफी अंगुलिकाएं मर जाती हैं।
लुप्त हो रही हैं देसी मछलियां
इलाके में पानी की प्रचुरता के कारण यहां मछलियों की कई प्रजातियां बहुतायत में पाई जाती थीं। कबई, ङ्क्षसघी, मुंगरी, बचबा आदि मछलियां कभी बहुतायत में मिलती थीं। आज इनकी कीमत आसमान पर है। पानी दूषित होने के कारण मछलियों के बीच कई तरह की बीमारियां भी फैल रही हैं।
0.5 पीपीटी से कम होना चाहिए जल का मान
जिला मत्स्य पदाधिकारी बताते हैं कि हैचरी के लिए जल का मान 0.5 पीपीटी (पार्टस पर ट्रिलियन) से कम होना चाहिए। मछलियों की अच्छी वृद्धि के लिए पीएच मान 7-8 के बीच होना चाहिए। कटिहार में एक हैचरी खोली गई है, लेकिन वहां ब्रूडर्स (दो से तीन साल की मछलियां) की कमी है। हैचरी के लिए मिट्टी भी बलुआही नहीं होनी चाहिए।
रसायन कर रहे पानी को प्रदूषित
खेती के लिए रसायनों और कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग पानी को प्रदूषित कर रहा है। इनके इस्तेमाल का असर पानी के पीएच मान पर पड़ता है। किसी खास रसायन से पानी खराब होने की बात अभी तक सामने नहीं आई है। चिकित्सकों के अनुसार फसल और सब्जियों के उत्पादन में इस्तेमाल होने वाली कीटनाशक दवा नाले के माध्यम से पोखर और नदी तक पहुंचकर पानी को प्रदूषित कर देती है। यह मछलियों के लिए खतरनाक हो जाता है।
मछलियों को गर्भधारण में समस्या
भूतल में आयरन की अधिक मात्रा के कारण मछलियों को गर्भधारण में व्यवधान होता है। मछली पालन में फिलहाल सबसे बड़ी समस्या आयरन की है। इसके लिए मत्स्य विभाग द्वारा आयरन रहित प्लांट लगाने की तैयारी चल रही है।
कालापानी के नाम से थी पहचान
पूर्णिया और कोसी इलाके को पूर्व में कालापानी के नाम से जाना जाता था। पानी में आयरन के अधिकतम स्तर के कारण कई बीमारियां होती रही हैं। कालांतर में मौसम परिवर्तन और आधुनिक मशीनों के इस्तेमाल से पेयजल के स्तर में सुधार हुआ है। यद्यपि मछलियों के निषेचन के लिए यह जल अभी तक उपयुक्त नहीं हो पाया है।
प्रयोगशाला में हो रही जांच
मिट्टी जांच के लिए मोबाइल मिट्टी जांच प्रयोगशाला चलाई जा रही है। भोलानाथ पासवान कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की मदद यह कार्यक्रम चल रहा है।
लोगों को हो रही पेट की बीमारी
पानी में आयरन और कार्बन की अधिक मात्रा इंसान के लिए खतरनाक है। यहां बड़ी संख्या में लोग पेट संबंधी बीमारियों से परेशान हैं। डॉ एनके झा के अनुसार पानी में विद्यमान तत्वों के कारण बच्चों के पेट में कृमि की बीमारी अधिक होती है।
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मछली पालन पर मत्स्य विभाग से जानकारी मांगी गई है। मछली पालने में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए विभाग के साथ बैठक कर नीति तैयारी की जाएगी।
- पंकज पाल, जिलाधिकारी
कोसी इलाके के पानी में आयरन की मात्रा अधिक है। इस कारण इसमें मछलियों के एग मेंब्रेन नहीं फटते हैं या काफी कम फटते हैं। ऐसे में अंडे निषेचित नहीं हो पाते हैं। हैचरी के इच्छुक मत्स्यपालक आवेदन दे सकते हैं। मिट्टी और पानी की जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी।
- कृष्ण कन्हैया
जिला मत्स्य पदाधिकारी
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