Move to Jagran APP

चांदी कठवा पोखर की हस्ती मिटाने पर आमदा हैं लोग

पूर्णिया। भूजल को सुरक्षित करने वाले उपकरण तालाब आज खुद की प्यास बुझाने को तरस रहे हैं। जिन इंसानों

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Jun 2017 09:20 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jun 2017 09:20 PM (IST)
चांदी कठवा पोखर की हस्ती मिटाने पर आमदा हैं लोग
चांदी कठवा पोखर की हस्ती मिटाने पर आमदा हैं लोग

पूर्णिया। भूजल को सुरक्षित करने वाले उपकरण तालाब आज खुद की प्यास बुझाने को तरस रहे हैं। जिन इंसानों के लिए यह सालों साल पानी देता रहा आज वही उसके दुश्मन हो गए हैं। हालात यह हैं कि चांदी पंचायत के चांदी कठवा सत्संग मंदिर के समीप का पोखर आज लोगों की यादों में ही सिमटकर रह गया हैं।

loksabha election banner

पोखर की खुदाई कब हुई किसी को कोई पता नहीं है लेकिन दस वर्ष पहले पूर्व मुखिया अनिल राय के द्वारा मनरेगा के तहत इस पोखर का जीर्णोद्धार कराया गया था। स्थानीय लोगों की उदासीनता के कारण यह पोखर फिर मिट्टी में तब्दील हो गया। यह पोखर पांच साल से मृतप्राय है, और सरकार के उदासीनता के कारण पोखर में जंगल उग आए है। पांच वर्ष पूर्व यह पोखर महर्षि मेंही सत्संग मंदिर की शोभा बढ़ाते थे, और सत्संग स्थल में पहुंचे श्रद्धालु इस पोखर में पैर हाथ धोकर ही सत्संग मंदिर में प्रवेश करते थे। लोग सुबह शाम इसके किनारे टहलने जाते थे। लेकिन अब यह बीते दिनों की बात हो गई। थोड़े से फायदे के लिए लोग इसकी पूरी हस्ती मिटाने पर आमादा हो गए हैं। यह सब हुआ उस सिस्टम की नजर के सामने हो रहा है जिस पर इसे बचाने की जिम्मेदारी थी। यह पोखर अभी भी मत्स्य पालन सहयोग समिति के नाम बंदोबस्त है। परंतु समिति के पदाधिकारी भी उसके जीर्णोद्धार के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। मत्स्य पालन सहयोग समिति के सचिव चंद्रदेव महलदार का कहना है कि यह पोखर समिति के नाम पांच वर्षों से बंदोबस्त है, परंतु पोखर के सुख जाने के कारण इसमें जंगल उग आए हैं। कई बार विभाग को इसके जीर्णोद्धार के लिए आवेदन भी दिया लेकिन उस पर कोई भी अमल नहीं किया गया।

पूर्णिया पूर्व प्रखंड में दर्जनों पोखर हैं जो रखरखाव के अभाव में मृतप्राय हैं। ग्रामीण बिनोद मेहता बताते हैं कि गांव के बीच मे यह पोखर गांव की सुंदरता को बढ़ाता था, परंतु आज इसकी स्थिति दयनीय बनी हुई है। वहीं सत्संग मंदिर के बाबा सुकलाल दास ने कहा कि दोपहर के समय तालाब के किनारे स्थित बाग में बच्चे दिन भर खेलते थे। आज यह सब सपने जैसा लगता है। तालाब का अस्तित्व ही खतरे में है। राजेश कुमार ने बताया कि दस वर्षों पूर्व तक वे नियमित तालाब के किनारे टहलने जाया करते थे। समय बीतने के साथ लोगों ने तालाब की महत्ता को भुला दिया। डॉ विश्वनाथ मेहता ने बताया कि पानी की जरूरत आदमी को हमेशा से रही है। यह जानते हुए भी लोभ में लोग धरती की कोख को खाली कर रहे हैं। तालाब न बचे तो जनजीवन मुश्किल में पड़ जाएगा। चांदी कठवा निवासी शंकर मेहता ने बताया कि उनके बाप दादा के जमाने में कई बार इस तालाब से 25 किलो की मछलियां निकाली गई थीं। अब यह यादों में ही सिमट गया है। आने वाली पीढ़ी को यहां तालाब के होने की बात पर भी ताज्जुब होगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.