तेरे जाने का देश को गम है, तेरी याद में सौ दीए भी कम है
पूर्णिया। मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक।
पूर्णिया। मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक। पुष्प की अभिलाषा को माखनलाल चतुर्वेदी ने जिन शब्दों में व्यक्त किया कुछ ऐसे ही विचारों तेरे जाने का देश को गम है, तेरी याद में सौ दीए भी कम है से ओत-प्रोत हैं पूर्णिया पूर्व प्रखंड के रानीपतरा की अवकाश प्राप्त शिक्षिका अर्चना देव। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सुश्री देव शहीदों के सम्मान में इस दीवाली सौ दीए तो जलाएंगी ही साथ ही अपनी मरणोपरांत अपनी आंखें व तमाम वे अंग दान करने का फैसला किया है जो सैनिकों के काम आ सके। उन्होंने लोगों से दीवाली में कम से एक दीया शहीदों के सम्मान में जलाने की अपील की है। कहा कि सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए 24 घंटे तक सीमा पर तैनात रहने वाले वीर जवानों के लिए एक दीप क्या सौ दीप भी जले तो कम होगा। घर परिवार से दूर कंपकंपाती ठंड, धूप व बरसात में सरहद पर तैनात रहकर ये वीर जवान हमारी सुख चैन के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं करते।
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--सरहद को समर्पित अर्चना का अर्पण
पूर्णिया: पूर्णिया पूर्व प्रखंड़ के राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सेवानिवृत प्रधानाध्यापिका एवं समाजसेविका अर्चना देव ने कहा कि शहीदों के माता- पिता भी पूजनीय हैं जिन्होंने ऐसे वीर सपूतों को अपने कोख से जन्म दिया।
समाज में उनका दर्जा सबसे ऊपर है। आमलोगों को उन शहीदों को सम्मान देना चाहिए जिसे देखकर सीमा पर तैनात जवानों और उनके माता- पिता का उत्साह धन्य-धन्य हो जाए। उन्होंने कहा कि भारत के सभी सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों के बच्चों को इन वीर जवानों के गाथाओं की एक क्लास देनी चाहिए जिनसे उनमें राष्ट्रप्रेम की भावना पैदा होगी और देश के लिए कुछ कर गुजरने कि तमन्ना जागेगी। इस दीपावली हम सब कम से कम एक दीप शहीदों के नाम अवश्य जलाएं। उन अमर शहीदों के लिए इस दीवाली मैं एक नहीं सौ दीये जलाऊंगी। देश की सुरक्षा के लिए 24 घंटे सीमा पर तैनात रहने वाले वीर जवानों के लिए व समाज के लिए अपनी कुर्बानी देने वाले हमारे पूजनीय है। ऐसे वीर सपूत जिसने फर्ज के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की वे समाज के लिये प्रेरणा के स्त्रोत हैं, साथ ही देश के सच्चे हीरो हैं। ऐसे वीर सपूतों को मेरे शरीर से खून का एक-एक कतरा भी देना पड़े तो में अपने आप को भाग्य शाली मानूंगी। मैं मरने के बाद में अपनी आंख सेना को दान देना चाहती हूं, अगर मरणोपरांत शरीर का और अंग इनके काम आए तो दान देना चाहूंगी।