पहले तूफान ने उजाड़ा अब किसानों को 'लूट' रहे व्यापारी
हरदा (पूर्णिया), संस : बीते दिनों आई आंधी, तूफान से भारी बर्बादी झेल चुके किसानों को अब बची मक्के का
हरदा (पूर्णिया), संस : बीते दिनों आई आंधी, तूफान से भारी बर्बादी झेल चुके किसानों को अब बची मक्के का उचित दाम भी बाजार में नहीं मिल पा रहा है। व्यापारी किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं और औने-पौने दाम पर उसकी फसल खरीद रहे हैं। 21 अप्रैल से पूर्व आए बेमौसम बारिश व ओलावृष्टि ने केनगर एवं पूर्णिया पूर्व प्रखंड क्षेत्र में गेहूं, दलहन की फसल को काफी क्षति पहुंचाई थी। उसके बाद 21 अप्रैल को आए तूफान ने रही सही कसर भी पूरी कर दी और लगभग 90 फीसद फसल बर्बाद कर दिए।
सर्वविदित है कि केनगर प्रखंड क्षेत्र में आलू उखाड़कर अधिकतर किसान मकई की बुआई करते हैं। जिससे अप्रैल माह में अधिकांश खेतों का मक्का दूध व साचे भरी होती है। ठीक उसी समय 21 अप्रैल को आए आंधी ने खेतों में लगी मकई फसल को धाराशायी कर दिया। नतीजतन किसानों के सारे अरमान चकनाचूर हो गये। जिनके पास थोड़ी बहुत फसल खेतों में बच गई तो अब व्यापारी उसे लूटने में लगे हैं। जानते हैं कि किसानों को अभी दूसरी फसल लगाने के लिए पूंजी का अभाव है। इसलिए व्यापारी मनमाने दाम पर उसे खरीदने की पेशकश कर रहे हैं। इन दिनों हरदा मंडी में मकई की दर 1020 से 1050 रूपए प्रति क्विंटल के दर से खरीदी जा रही है जिससे किसान हताश हैं। लेकिन सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है। न तो किसानों के हित में मक्का आधारित उद्योग क्षेत्र में खुल पाया, न ही सरकार द्वारा मकई का समर्थित मूल्य लागू किया गया है। क्षेत्र के किसानों ने बताया कि दिनों-दिन रासायनिक उर्वरक खाद, बीज, डीजल इंजन से सिंचाई व खेतों में श्रमिकों का मजदूरी का चार्ज बढ़ता ही जा रहा है। फसल उत्पादन के बाद अनाज का सरकारी दर निर्धारित नहीं होने से स्थानीय व्यवसायियों के हाथों औने-पौने दर में बेचने को विवश हो रहे हैं। फिलहाल इस क्षेत्र के कृषक प्रकृति और सरकार की उपेक्षा की दोहरी मार झेल रहे हैं।