नश्तर बन गई हवा और दर्द बनी दवा
राजेश कुमार, पूर्णिया यह अकाट्य सच है कि हवा के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती और दर्द कभी दव
राजेश कुमार, पूर्णिया
यह अकाट्य सच है कि हवा के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती और दर्द कभी दवा नहीं हो सकती। लेकिन सच यह भी है कि जख्म पर हवा भी नश्तर बनकर लगती है और अत्यधिक दुख में दर्द भी दवा बन जाती है। इलाके में मंगलवार की रात हवा ने जो अपना रौद्र रूप दिखाया तो प्रभावित क्षेत्रों में हवा नश्तर और दर्द ही दवा बन गयी है। इलाके की हालत यह कि तेज हवा का झोंका लोगों को डरा जाती है और आंधी का नाम सुनते ही लोगों की रूह फना होने लगती है। स्थिति यह है कि बच्चों को डराने के लिए मां कहने लगी है कि बेटे सो जा नहीं तो आंधी आ जाएगी। दूसरी ओर लोग उस काली रात की भयावह बातें याद कर दर्द को कम करने के प्रयास में लगे हैं जिसने 40 जिंदगानी लील ली।
अब डगरूआ के मालोबीटा गांव के मो. फकरूद्दीन की चार बेटियों की ही बात लें तो इनकी मां लखिया खातून और एक साल का एकलौता भाई मुंतसिर आंधी में घर गिरने से मारे गये। आंधी के दिन एक बेटी फरजीना बड़े भाई के यहां और एक बेटी जूही प्रवीण नानी के यहां थी। वस्ताना और राहत प्रवीण मां और भाई के साथ सोए थे कि आंधी आ गयी और दोनों बेटियां तो घर से निकल गयी लेकिन मां-बेटे शिकार हो गये। इधर भाई और मां की मौत बाद दोनों बहनें भी घर आ गयी है। लोगों ने बताया कि चारों बहनें रात में तकिया को थपकियां दे सो जा मुंतसिर कहकर सुला रही थी। उन्हें पता है कि उसका भाई अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन दर्द को ताजा कर इसे कम करने के प्रयास में जुटी हैं चारों बहनें। पिता फकरूद्दीन लोगों से हरदम पत्नी और बेटे की बात करते रहते हैं। वे इसलिए नहीं रोते कि बेटियां बदहवास हो जाएंगी। लेकिन अकेले में आंसू पलकों का बांध तोड़ निकल ही आते हैं। हरखेली, महबाड़ी, फूलपुर, गांगर सहित गांवों में हवा के नाम से ही लोगों की रूह कांपने लगती है लेकिन चर्चा आंधी की ही हो रही है। पीड़ित परिवारों का हाल बुरा है। उजड़े घरों को लोग दुरूस्त करने में लगे हैं और बच्चे उसमें भी खेल के बहाने ढूंढ़ने में जुटे हैं।