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अच्छा हुआ कि विधानसभा रग्बी का मैदान नहीं बना

जागरण संवाददाता, पूर्णिया : पटना में चल रहे सत्ता संग्राम का पटाक्षेप होते ही राजनीतिक चर्चाएं परवान

By Edited By: Published: Fri, 20 Feb 2015 09:23 PM (IST)Updated: Fri, 20 Feb 2015 09:23 PM (IST)

जागरण संवाददाता, पूर्णिया : पटना में चल रहे सत्ता संग्राम का पटाक्षेप होते ही राजनीतिक चर्चाएं परवान चढ़ उठी। मांझी के जाने और नीतीश के दुबारा आने की हलचल के बीच समीक्षक जहां दोनों के नफा-नुकसान का आकलन करने में जुटे, वहीं नीतीश खेमा खुशियों से उछल पड़ा और मांझी खेमा में सन्नाटा पसर गया।

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शुक्रवार सुबह आंख खुलते ही लोग टीवी से चिपक गए। अब आगे क्या होगा, लोग पल-पल से अवगत होना चाहते थे। कामकाजी दिन होने के बावजूद दोपहर 12 बजे तक सड़कों पर चहल-पहल भी कम थी। विश्वकप क्रिकेट मैच में बीते रविवार को हुए भारत-पाकिस्तान के मैच के दौरान कुछ ऐसा ही सन्नाटा दिखा था। और, आज का मैच राजनीतिक था। मांझी बनाम नीतीश का। मांझी के कंधे पर सवार बीजेपी बनाम गैर बीजेपी राजनीतिक पार्टियों का। फर्क यह विधानसभा का मैदान क्रिकेट के लिए सजता नहीं दिख रहा था बल्कि रग्बी वाले हालात बनते नजर आ रहे थे। जागरण कार्यालय के पास एक होटल में टीवी से चिपके राजनीति के जानकारी विनोद बिहारी कहते हैं कि यह शायद पहला मौका है जब किसी विश्वास मत के दौरान आसपास के चार अस्पतालों को हाई अलर्ट पर रखा गया था। मतलब साफ था कि सरकारी तंत्र को खुफिया जानकारी थी कि अगर विश्वासमत तक बात पहुंचती तो क्या होता? खैर, विश्वासमत से पहले ही मांझी के इस्तीफे ने खेल की योजना ही खराब कर दी। और, यह अच्छा हुआ कि मांझी ने विधानसभा को रग्बी का मैदान नहीं बनने दिया।

बहरहाल, मांझी के इस्तीफे, उनके प्रेस कांफ्रेंस और फिर नीतीश कुमार के संवाददाता सम्मेलन के बाद स्थिति साफ हो चुकी थी। इसके बाद बाजार में चहल-पहल शुरू हो गई। पर, आज हर ओर इसी घटनाक्रम की चर्चा रही। नवंबर में होने वाले चुनाव में भाजपा और गैर भाजपाई राजनीतिक दलों के भविष्य पर चर्चा भी। फोर्ड चौक स्थित चाय दुकान में चर्चा के दौरान प्रफुल्ल दास कहते हैं कि भाजपा पूरी तरह से एक्सपोज हो गई। भाजपा के चक्कर में भोलेभाले मांझी को शहीद होना पड़ा। जबकि, भाजपा समर्थक गौतम कहते हैं जो संदेश जाना है वह बिहार की जनता को जा चुका है। इस प्रकरण ने भाजपा को और मजबूत कर दिया है। दरअसल, बिहार अभी जाति आधारित राजनीति से बाहर निकल जाएगा ऐसा संभव नहीं है। भाजपा के मूल वोटर कथित तौर ऊंची जाति के लोग, बनिया-व्यवसाई आदि माने जाते हैं। अब इस प्रकरण के महादलित समाज का वोट का लाभ भी उन्हें सीधे तौर पर मिलेगा। ऐसे में भाजपा तो यहां सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर मजबूत नजर आ रही है। जबकि कोसी के नजर से देखें तो यही स्थिति पप्पू यादव के साथ है। यादव वोटर और युवा वोटर तो उनके साथ हैं ही, अब महादलित समुदाय का थोक वोट भी उनके साथ आएगा। यह स्थिति कोसी में पप्पू यादव को भी मजबूत बनाएगी।


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