चीनी मिल का धुंआ बंद, प्रगति मंद
राकेश सिंह, बनमनखी (पूर्णिया), संस : एकमात्र औद्योगिक संस्थान बनमनखी चीनी मील बंद रहने से जिले की रौनकता मद्धिम पड़ चुकी है। जबतक यह मील धुंआ उगलता रहा तबतक इलाके के किसानों की आर्थिक स्थिति उन्नत होती रही परंतु मील बंदी के बाद से ही कृषकों की आर्थिक स्थिति दयनीय होती गई। व्यवसाय मंडी भी वीरान हो गई और बड़े व्यवसायी धीरे-धीरे अपना व्यवसाय समेट अन्यत्र चले गए।
1970 से शुरू हुआ उत्पादन
चीनी मील की स्थापना दि पूर्णिया को-आपरेटिव सुगर फैक्ट्री लि., बनमनखी के नाम से 28.4.1956 को हुई थी, जो 3 जून 1977 तक सहकारिता के अधीन रहा। 2 फरवरी 1970 से इस मील में चीनी का उत्पादन शुरू हुआ, परंतु इस बीच बिहार सरकार द्वारा भारत के राष्ट्रपति से अनुमति प्राप्त करते हुए बिहार सरकार के अधिनियम संख्या 13/1977 बिहार राज्यपाल द्वारा सहकारिता से बिहार राज्य चीनी मील निगम को सौंप दिया गया। इस मील की क्षमता एक हजार टन प्रतिदिन थी। मील की अपनी 119.76 एकड़ की अचल संपत्ति है, जिसमें से 64.76 एकड़ में मील, आवासीय कॉलोनी एवं गोदाम आदि अवस्थित है।
1997-98 में बंद हो गया मील
1997-98 में अकुशल नेतृत्व के अभाव में यह मील पूरी तरह बंद हो गया। मील बंद होने के पश्चात कृषकों के गन्ने का मूल्य धीरे-धीरे भुगतान हुआ। कर्मचारियों के भविष्य निधि मद के बकाए 14 करोड़ का भी धीरे-धीरे भुगतान अब प्रारंभ हुआ इस दौरान कई कर्मी स्वर्ग सिधार गए तथा कई सेवानिवृत्त हो गए। स्थानीय कृषक कमलेश्वरी प्रसाद सिंह, प्रवेश कुमार रौशन, किशोर यादव सहित मील कर्मी अमरेंद्र यादव कहते हैं कि इस मील के खुलने से वर्षो की आस पूरी होगी। किसानों एवं कर्मचारियों को नवजीवन मिलेगा। पूर्णिया-बनमनखी का क्षेत्र गन्ना एवं पाट बाहुल्य क्षेत्र है। यहां के खेतों की मिट्टी इन फसलों के अनुकूल है और इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस चीनी मील की स्थापना की गई थी परंतु वर्षो मील बंद हुए हो गया लेकिन इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। चुनावी मौसम में इसे लेकर आश्वासनों की झड़ी लग रही है।