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पीडि़ता का दर्द- तलाक से बेहतर है शादी ही न हो...

तीन तलाक का दर्द वही समझ सकते हैं, जिन्‍हें इसका दंश झेलना पड़ा हो। बिहार के सीतामढ़ी की शबनम कहती हैं कि हर रोज अल्लाह से यही दुआ है कि किसी औरत को तीन तलाक की सजा न मिले।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Tue, 22 Aug 2017 11:16 PM (IST)Updated: Wed, 23 Aug 2017 05:28 PM (IST)
पीडि़ता का दर्द- तलाक से बेहतर है शादी ही न हो...
पीडि़ता का दर्द- तलाक से बेहतर है शादी ही न हो...

पटना [जेएनएन]। बिहार के सीतामढ़ी जिले के बाजपट्टी थाने के हरपुरवा गांव में तीन साल के बेटे के साथ अपने पिता के घर रह रहीं शबनम खातून के चेहरे पर अब संतोष का भाव है। तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वे प्रसन्न हैं। कहती हैं कि तीन तलाक को हथियार बनाकर मुस्लिम औरतों के साथ खिलवाड़ करने की परंपरा पर विराम लगा है। तीन तलाक की प्रताडऩा से रोम-रोम वाकिफ हैं।

शबनम की शादी चार साल पहले शिवहर जिले के कोलसो गांव निवासी मो. जमीरूल से शादी हुई। शादी के कुछ दिन बाद से ही ससुराल वालों ने दहेज के लिए प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। हालांकि, इस बीच एक बेटा भी हुआ। एक दिन पति ने तीन तलाक कह रिश्ता ही खत्म कर दिया।

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बेटे को लेकर मायके चली आईं। यहां पंचायत बुलाई गई और बच्चे की परवरिश के लिए निर्णय लिया गया। पंचायत में भी बात नहीं बनी तो कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। कोर्ट ने मुस्लिम लॉ को आधार बनाया और तीन तलाक के फैसले पर केवल मुआवजे की राशि देने की बात कही।

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पिता रिक्शा चलाते हैं और उससे जो कमाई होती है, उससे किसी तरह तीन वर्षीय बेटे इब्राहिम और अन्य लोगों का भरण-पोषण होता है। पता नहीं कब तक पिता पर बोझ बनी रहूंगी। शबनम कहती हैं कि हर रोज अल्लाह से यही दुआ है कि किसी औरत को तीन तलाक की सजा न मिले।

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