मांझी के फेंके पासे में उलझ गए सभी दल
बिहार में विधानसभा चुनाव की बिसात बिछने लगी है। राजनीति मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के फेंके पासे में सभी दल बुरी तरह से उलझ गए हैं। अभी तक पता नहीं चल रहा है कि मांझी की नैया किस किनारे लगेगी।
पटना। बिहार में विधानसभा चुनाव की बिसात बिछने लगी है। राजनीति मंच पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के फेंके पासे में सभी दल बुरी तरह से उलझ गए हैं। अभी तक पता नहीं चल रहा है कि मांझी की नैया किस किनारे लगेगी।
रास्ते की तलाश में दिल्ली का चक्कर लगा रहे मांझी ने लालू व नीतीश के मिलन में पेंच फंसा दिया है। मांझी को माइनस करके एनडीए भी दलित वोटरों को नाराज करने का रिस्क नहीं ले सकती है।
सूबे में दलितों की आबादी करीब 18 फीसद है। विधानसभा की 243 सीटों में से 30 सीटों पर हार- जीत दलित वोटरों पर निर्भर करती है। दलित वोटरों में अपनी अधिक पैठ बनाने के लिए ही नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में हार के बाद जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था।
मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद मांझी दलितों के नेता के तौर पर उभरे। मौके का फायदा उठाते हुए मांझी ने भी नीतीश कुमार को दुश्मन नंबर एक घोषित करके राजनीति में पकड़ मजबूत बनाने की कवायद शुरू कर दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर भाजपा नेताओं की तारीफ करने में पीछे नहीं रहे। आए दिन मोदी और कभी कभी लालू की भी प्रशंसा करते रहे है।
चुनाव में दलित वोट पाने को भाजपा और राजद मांझी को अपने-अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहे हैं। लालू ने उत्साह में आकर मांझी को साथ लेकर चुनाव लडऩे की बात कह दी, जो नीतीश को नागवार लगी। इससे जनता परिवार के विलय पर ही ग्रहण लग गया। अपना कद बढ़ता देखकर मांझी ने भी राजद अध्यक्ष के सामने नीतीश को छोडऩे और उनको मुख्यमंत्री बनाने की शर्त रख दी।
बताया जाता है कि गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात के दौरान मांझी ने एनडीए में शामिल होने के एवज में लोजपा और रालोसपा से अधिक सीट देने का आग्रह किया है। दलित वोटरों के चिटकने के डर से मांझी की चाल को भली भांति समझने के बाद भी भाजपा, राजद समेत दूसरे दल उनके खिलाफ कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं।