बिहार में अनिश्चितता के दौर से बाहर आने लगी कांग्रेस
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के अंदर छाई धुंध धीरे-धीरे छंटने लगी है। बिहार की बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में आवश्यकता पड़ी तो कांग्रेस अपने बलबूते भी चुनाव लड़ सकती है। वैसे भी पार्टी लंबे समय से गठबंधन के मसले पर दो धु्रवों में बंटी नजर आती रही है।
पटना [सुनील राज]। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के अंदर छाई धुंध धीरे-धीरे छंटने लगी है। बिहार की बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में आवश्यकता पड़ी तो कांग्रेस अपने बलबूते भी चुनाव लड़ सकती है। वैसे भी पार्टी लंबे समय से गठबंधन के मसले पर दो धु्रवों में बंटी नजर आती रही है।
कांग्रेस के आधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार चुनाव की सरगर्मी तेज होते ही पार्टी के पुराने नेताओं की ओर से यह मांग जोर पकडऩे लगी है कि कांग्रेस को अपनी गिरती साख बचाने और पार्टी को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए अपने बलबूते पर चुनाव लडऩा चाहिए।
गठबंधन मेंं कांग्रेस को उसकी हैसियत के हिसाब से मौका नहीं दिया जाता है। खुद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अशोक चौधरी ने राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि पार्टी कार्यकर्ताओं का अपमान किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उनका दो टूक कहना था कि सहयोगी कांग्रेस को कम कर आंकना बंद करें। डॉ. चौधरी के इस बयान से गठबंधन के नाम पर ही बिदक जाने वाले पार्टी नेताओं को बड़ी राहत मिली है।
सूत्र बताते हैं कि डॉ. चौधरी ने जो कहा उसके पीछे कई कारण थे। उनके बयान के पीछे अगले दिन हुई कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक का हवाला दिया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस आलाकमान ने बिहार के कांग्रेस प्रभारी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. सीपी जोशी के हवाले बिहार कांग्रेस के अंदर यह संदेश प्रचारित करा दिया है कि आवश्यकता पडऩे पर कांग्रेस गठबंधन का मोह छोड़ अपने दम पर भी चुनाव लड़ सकती है।
कार्यकारिणी की बैठक में डॉ. जोशी ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और अन्य वरिष्ठ नेताओं को टास्क सौंपा है कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए दो-दो उम्मीदवारों का बायोडाटा तैयार करें, ताकि आवश्यकता पडऩे पर आलाकमान को निर्णय लेने में किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।