सत्य-अ¨हसा के साथ दिखी संघर्ष की कहानी
अधिवेशन भवन में महात्मा गांधी पर आधारित फिल्मों का हुआ प्रदर्शन। दूसरे दिन 'मैंने गांधी क
अधिवेशन भवन में महात्मा गांधी पर आधारित फिल्मों का हुआ प्रदर्शन
दूसरे दिन 'मैंने गांधी को नहीं मारा' एवं 'रोड टू संगम' की प्रस्तुति
जागरण संवाददाता, पटना - कला संस्कृति एवं युवा विभाग एवं बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड की ओर से आयोजित चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष व पेनोरमा फिल्म महोत्सव के मौके पर अधिवेशन भवन में गांधी से जुड़ी फिल्मों का प्रदर्शन हुआ। दूसरे दिन 'मैंने गांधी को नहीं मारा' एवं 'रोड टू संगम' की प्रस्तुति हुई।
रोड टू संगम में दिखी देशभक्ति की यात्रा - अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली फिल्म 'रोड टू संगम'पेनोरमा फिल्म महोत्सव में भी दर्शकों को खूब पंसद आई। अभिनेता परेश रावल और ओमपुरी के अभिनय से सजी फिल्म में गांधी के सिद्धांतों और मूल्यों को बखूबी दिखाया गया। फिल्म की कहानी एक मुस्लिम मैकेनिक हशमत उल्लाह के इर्द-गिर्द घूमती है। जिसके पास उस गाड़ी का इंजन मरम्मत करने के लिए आता है जिसमें कभी महात्मा गांधी की अस्थियों को इलाहाबाद के संगम पर विसर्जित करने के लिए ले जाया गया था। वह दिन-रात एक कर मशीन को बनाने में लगा रहता है। तभी एक दिन इलाहाबाद कोर्ट में बम धमाका होता है और पुलिस मुस्लिम लोगों को धर-पकड़ कर जेल में बंद कर देती है। जिसके बाद मुस्लिम नेता पुलिस के विरोध में खड़े हो जाते हैं। हशमत को इलाके के मौलवी और कुछ मुस्लिम नेता इंजन की मरम्मत करने से रोकते हैं। उसे मुस्लिम भाईयों के साथ एकजुट खड़े होने को कहता है। हशमत के सामने सबसे बड़ी समस्या होती है कि वो उस इंजन को ठीक करे जिससे किसी ¨हदू की अस्थियों को लाया गया था या फिर अपनी कौम और दंबगों का साथ देते हुए इंजन मरम्मत करने से इंकार कर दे। लेकिन हशमत अपने दिल की आवाज सुनता है और फिर जाति धर्म से परे होकर इंजन बनाता है। इंजन बनने के बाद गाड़ी में उसे लगा दिया जाता है जिसके बाद महात्मा गांधी की अस्थियों को गाड़ी में रखकर शोभा-यात्रा निकालते हुए गंगा में प्रवाहित कर दी जाती है।
फिल्म में दिखी एक लड़की की संघर्ष की कहानी - जाहनु बरूआ निर्देशित फिल्म 'मैंने गांधी को नहीं मारा' की प्रस्तुति अधिवेशन भवन में की गई। अभिनेता अनुपम खेर, प्रवीण डबास एवं अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर आदि कलाकारों के अभिनय सराहा गया। फिल्म की कहानी ऐसे इंसान की है जो मानसिक रूप से अस्वस्थ रहता है। मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण उसे वहम होता है कि उसने गांधी जी को मारा है। एक ओर पिता की बीमारी और बेटी का प्यार और समझदारी को दिखाया गया है। पिता की बीमारी को दूर करने के लिए बेटी की प्रतिबद्धता और संघर्ष को बखूबी दिखाया गया।
फिल्म प्रदर्शन के दौरान अधिवेशन भवन में तारानंद वियोगी, सत्यप्रकाश मिश्र, संजय कुमार सिंह, देवेन्द्र खंडेलवाल, फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम, रंजन सिन्हा आदि मौजूद थे।
आज दिखाई जाने वाली फिल्में -
सुबह 11:00 बजे - मेकिंग ऑफ महात्मा, महात्मा गांधी, साबरमती
शाम 3:00 बजे - लगे रहो मुन्ना भाई