कप्तान का नाम बताने को तैयार नहीं कोई गठबंधन
विधानसभा चुनाव अब बिल्कुल नजदीक आ चुका है। सभी दल तैयारी में जुट गए हैं। लेकिन शायद पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि कोई भी गठबंधन अपने कप्तान का नाम बताने को तैयार नहीं है।
पटना [एसए शाद]। विधानसभा चुनाव अब बिल्कुल नजदीक आ चुका है। सभी दल तैयारी में जुट गए हैं। लेकिन शायद पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि कोई भी गठबंधन अपने कप्तान का नाम बताने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा, यह एलान करने को कोई राजी नहीं है। यहां तक कि वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी नाम लेने से परहेज किया जा रहा है। गठबंधन में शामिल दलों के अपने-अपने आधार वोट पर असर पडऩे और दलों की अंदरूनी राजनीति इसका मुख्य कारण बताई जा रही है। 1990 से पहले तक जब बिहार में कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी तब उस समय तक यह प्रचलन था कि आलाकमान चुनाव बाद मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन करता था।
मगर उस समय भी लोगों को यह पता रहता था कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा, भले ही पहले से उसके नाम की घोषणा नहीं की गई हो। 1990 में लालू प्रसाद और फिर 2000 में हुए चुनाव में राबड़ी देवी मुख्यमंत्री पद की घोषित उम्मीदवार थीं। 2005 और फिर 2010 में नीतीश कुमार के नाम का एलान था।
लेकिन 2015 में नीतीश कुमार के नाम पर सस्पेंस बरकरार है। माना जा रहा है कि जदयू, राजद, कांग्रेस और राकांपा का गठबंधन जीतने पर उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाएगा लेकिन चुनाव से पहले इसकी घोषणा नहीं की जा रही। खुद नीतीश कुमार भी अबतक इस मुद्दे पर खामोश हैं, वहीं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद बार-बार दोहरा रहे हैं कि गठबंधन में हम सभी को बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार रहना चाहिए। सूत्रों ने बताया कि पिछले 20 सालों में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के जातीय आधार वाले मतदाता दो अलग धूरी पर रहे हैं। ऐसे में नीतीश कुमार का नाम सामने आने से लालू प्रसाद का आधार वोट प्रभावित होगा। इसके विपरीत लालू प्रसाद का आधार वोट पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को लेकर अधिक सहज है।
करीब दो माह पहले राजद के जिलाध्यक्षों की बैठक में नीतीश कुमार से अधिक मांझी के प्रति राजद नेताओं का झुकाव देखा जा चुका है। यह भी पूछा जा रहा है कि हाल के वर्षों में क्राइम कंट्रोल एक्ट(सीसीए) का इस्तेमाल सबसे अधिक किस जाति के खिलाफ हुआ है? ऐसी स्थिति में लालू प्रसाद द्वारा मांझी को बार-बार अपने गठबंधन में आमंत्रण देने के भी मायने लगाए जाने लगे हैं।
लालू प्रसाद को नवल किशोर राय, देवेंद्र यादव, दिलीप यादव, रामकृपाल यादव और अब पप्पू यादव जैसे उनके स्वजातीय नेता छोड़ चुके हैं। इस कारण भी लालू प्रसाद बहुत सतर्क हैं। वह यह भी समझते हैं कि महादलित में पासवान को शामिल करने का निर्णय मांझी ने लिया था जिसके कारण पासवान जाति में मांझी के प्रति हमदर्दी है।
वहीं, भाजपा से नजदीकी बढ़ाने में लगे मांझी अच्छी तरह समझते हैं कि भाजपा उन्हें कभी भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाएगी। वह यह भी मानते हैं कि उनका सामाजिक आधार कमजोर है जिसे किसी न किसी दल के साथ की जरूरत है। मांझी अभी लालू-नीतीश गठबंधन के लिए एक नए फैक्टर बन चुके हैं, जिसके कारण भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का एलान नहीं हो पा रहा।
दूसरी ओर एनडीए में शामिल भाजपा, लोजपा एवं रालोसपा भी अपने मुख्यमंत्री के उम्मीदवार की घोषणा से परहेज कर रहे हैं। दो माह पूर्व एक कार्यक्रम में आए भाजपा के पूर्व अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने हालांकि खुलकर कहा था कि देश में नरेंद्र मोदी और बिहार में सुशील कुमार मोदी।
लेकिन उनके इस बयान को रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने तुरंत ही निजी बयान करार देकर एक प्रकार से अपनी असहमति जता दी। भाजपा के अंदर डा.सीपी ठाकुर, प्रेम कुमार, चंद्रमोहन राय जैसे नेता पहले कई बार सुशील कुमार मोदी के नाम पर असहमति जता चुके हैं। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इसलिए बिहार का विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लडऩे की बात बार-बार दोहराता है।