जाति के जहर ने रोका बिहार का विकास : रामविलास पासवान
लोजपा अध्यक्ष व केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने बिहार की जातीय राजनीति के बहाने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बिहार के पिछड़ेपन का प्रमुख कारण है कि यहां की राजनीति में जाति ऊपर है और विकास पीछे।
पटना। लोजपा अध्यक्ष व केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने बिहार की जातीय राजनीति के बहाने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बिहार के पिछड़ेपन का प्रमुख कारण है कि यहां की राजनीति में जाति ऊपर है और विकास पीछे। जाति के जहर ने ही बिहार के विकास को रोक रखा है।
पासवान गुरुवार को जागरण फोरम में 'जाति बनाम विकास की राजनीति' विषय पर अपना व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने सवाल किया कि बिहार में पिछले 25 वर्षों से तो पिछड़ों की ही सरकार है, फिर राज्य के पिछड़ों, अतिपिछड़ों और दलितों की दुर्गति क्यों है?
आरोप लगाया कि यहां की सरकार ने वोट के लिए जातीय सम्मेलनों की परिपाटी शुरू की। यहां तक कि वोट के लिए दलितों को महादलित में बांट दिया। सवाल किया कि इससे बिहार का कितना विकास हुआ? कहा कि पिछले दस वर्षों में यहां की सरकार गंगा नदी पर दो पुलों का निर्माण तक नहीं करा सकी और विकास के नाम पर म्यूजियम का निर्माण करा दिया। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल किया कि इस म्यूजियम का क्या करेंगे? अब पुराने म्यूजियम का क्या होगा?
उन्होंने बिहार की जनता से सवाल किया कि गरीबों की बात करने वाले लालू प्रसाद ने अपने 15 वर्षों के शासन में गरीबों के लिए क्या किया? जातीय सम्मेलनों का आयोजन करते रहे और कहते हैं कि जातीय व्यवस्था को तोड़ेंगे। जब तक देश में रोटी और बेटी की समस्या रहेगी तब तक जाति व्यवस्था खत्म नहीं हो सकती।
इसके लिए सरकारी स्तर पर जब तक अंतरजातीय व अंतरधार्मिक विवाह करने वालों को रोजी-रोटी की गारंटी नहीं मिलेगी, तब तक इसे तोडऩा संभव नहीं है, लेकिन स्थिति यह है कि यहां सरकारी अफसरों की पहचान भी जाति से ही की जाती है।
उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछा कि बिहार को बीमारू राज्य कहे जाने पर उन्हें गुस्सा क्यों आता है? उन्होंने नीतीश कुमार और लालू प्रसाद दोनों को चुनौती दी कि अगर वे एक-दूसरे के इतने ही हितैषी हैं तो नीतीश लालू प्रसाद के 15 वर्षों के शासनकाल को बिहार का स्वर्णिम काल क्यों नहीं कहते? या फिर लालू प्रसाद नीतीश कुमार के दस साल के शासन को 'सुशासन' क्यों नहीं बताते?
पासवान ने कहा कि जाति व्यवस्था तो देश के अन्य राज्यों में भी है, लेकिन वहां विकास के मार्ग में जाति कभी आड़े नहीं आती। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जातीय व्यवस्था को तोडऩे की लड़ाई को आगे ले जाने वाले जितने भी नेता या समाज सुधारक हुए हैं वे सवर्ण जातियों के ही रहे हैं।
उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण, स्वामी सहजानंद सरस्वती, राज नारायण सरीखे नेताओं का नाम लेकर कहा कि ये लोग पिछड़े या दलित समाज के नहीं थे। उन्होंने कहा मैं डॉ. राममनोहर लोहिया का शिष्य रहा हूं। आज हमारी लड़ाई समाज के लिए नहीं, बल्कि कुर्सी की लड़ाई बनकर रह गई है।
पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वे भी सवर्ण थे। उन्होंने पिछड़ों को मंडल कमीशन का तोहफा दिया, लेकिन जाति की लड़ाई लडऩे वाले वीपी सिंह को भी भूल गए।