दो-दो उम्रकैद और 30 साल जेल की सजाएं मुकर्रर हैं शहाबुद्दीन के नाम
सिवान के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन एक बार फिर जेल में हैं। दो-दो उम्रकैद पा चुके शहाबुद्दीन पर आरोपों की लिस्ट इतनी लंबी है कि अगर में सजा हो जाए तो भुगतने में कई जन्म लगेंगे।
By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 30 Sep 2016 08:12 PM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2016 11:07 PM (IST)
पटना [राज्य ब्यूरो]। अपराध की सीढिय़ां चढ़ते-चढ़ते राजनीतिक गलियारे में चमक बिखरने वाले शहाबुद्दीन फिर जेल पहुंच गए हैं। लोग कह रहे कि अब शायद ही वे बाहर आ पाएं। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। सरकार अब कभी इतनी बदनामी झेलने जैसा काम नहीं करेगी। वैसे भी दो उम्रकैद और 30 साल जेल की सजा उन्हें सुनाई जा चुकी है। चंदा बाबू के तीसरे बेटे की हत्या के जिस मामले में उनकी जमानत रद हुई है, उसमें अभी ट्रायल बाकी है।
1990 से अपराध की दुनिया की दुनिया से राजनीति में आए
10 मई, 1967 को सिवान के प्रतापपुर में जन्मे मो. शहाबुद्दीन ने वर्ष 1990 में जब अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखा था, तब शायद ही किसी ने यह उम्मीद की होगी कि वह बिहार की राजनीति को लगातार 26 वर्षों बदनामी देते रहेंगे।
19 साल की उम्र में अपराध
राजद के बाहुबली नेता व पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के खिलाफ अपराध का मामला वर्ष 1986 में दर्ज हुआ हो जब वह मात्र 19 वर्ष की अवस्था में था। लालू प्रसाद की छत्रछाया में वर्ष 1990 में जनता दल के टिकट से मो. शहाबुद्दीन के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई जब उन्हें सिवान से प्रत्याशी बनाया गया था। उसके बाद शहाबुद्दीन ने वर्ष 2009 तक विधानसभा और लोकसभा के लिए जीत हासिल की।
कई जन्मों के बराबर की मिल सकती है सजा
शहाबुद्दीन के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों की सूची इतनी लंबी है कि यदि उन्हें सभी मामलों में सजा सुनाई जाती है तो उन्हें भुगतने के लिए कई जन्म लेने होंगे। अबतक आठ आपराधिक मामलों में 30 साल की और दो मामलों में आजीवन कारावास की सजा पाए शहाबुद्दीन के खिलाफ हत्या, अपहरण, रंगदारी, घातक हथियार रखने और दंगा जैसे दर्जनों मामले दर्ज हैं।
शहाबुद्दीन को सिवान के तत्कालीन एसपी एसके सिंघल पर जानलेवा हमला करने के मामले में भी अदालत ने 10 साल की सजा सुनाई है। जबकि, चंदा बाबू के दो बेटों को तेजाब से नहलाकर मारने और भाकपा (माले) कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता का अपहरण कर हत्या के मामले में भी आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है।
वर्ष 2001 में जब सिवान के तत्कालीन एसपी बीएस मीणा ने प्रतापपुर में धावा बोला तब शहाबुद्दीन समर्थकों ने न केवल पुलिस पर जमकर फायरिंग की, बल्कि तीन जीप को भी फूंक दिया। इस मुठभेड़ में दो पुलिसकर्मियों समेत कुल आठ लोगों की मौत हुई।
वर्ष 2005 में सिवान के तत्कालीन एसपी रत्न संजय व डीएम सीके अनिल ने एक बार फिर शहाबुद्दीन की हनक को चुनौती देने की कोशिश की और उन्हें भी कड़े प्रतिकार का सामना करना पड़ा। लेकिन इस छापेमारी में पुलिस ने एके-47 रायफल के साथ कई घातक हथियार, सेना के इस्तेमाल वाले नाइट विजन चश्मे, पाकिस्तान निर्मित हथियार और कई अन्य आपत्तिजनक सामान बरामद किए।
यह सिवान में शहाबुद्दीन के आतंक का ही असर था कि सरकार को शहाबुद्दीन के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों के ट्रायल के लिए सिवान जेल में ही दो-दो विशेष अदालतों का गठन करना पड़ा। वर्ष 2005 में पुलिस शहाबुद्दीन को दिल्ली से गिरफ्तार कर सिवान जेल आई थी। वह तब से जेल में बंद थे। शहाबुद्दीन को पहली सजा वर्ष 2007 में दो साल के कैद की मिली थी। उसके बाद जैसे-जैसे ट्रायल आगे बढ़ते गये, सजा मिलने की रफ्तार भी बढ़ती गई। शहाबुद्दीन को भाकपा (माले) कार्यकर्ता छोटेलाल बैठा और चंदा बाबू के दो बेटों सतीश व गिरीश की हत्या मामले में आजीवन कारावास की सजा मिल चुकी है।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें