पढ़ें, आखिर शत्रुघ्न ने क्यों कहा- धैर्य टूटा तो कुछ भी हो सकता है
बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर सिने अभिनेता व पटना साहिब से भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा खुद को अपनी ही पार्टी के अंदर असहज महसूस कर रहे हैं।
पटना [राजीव रंजन]। बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर सिने अभिनेता व पटना साहिब से भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा खुद को अपनी ही पार्टी के अंदर असहज महसूस कर रहे हैं। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के एक पुराने वक्तव्य को दोहराया जिसमें उन्होंने कहा था 'मुझे बाहर वालों से नहीं, अपनों से ही खतरा है।'
यह भी कहा कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह योग मुद्रा में हूं और अपने अंदर के धैर्य को बांधे हुए हूं। अगर यह धैर्य टूटा तो 'कुछ भी हो सकता है।' उन्होंने एक फिल्म का गाना भी गुनगुनाया जिसके बोल थे 'उफ्फ न कहेंगे, लब सी लेंगे, आंसू पी लेंगे।'
भाजपा सांसद ने गुरुवार को 'दैनिक जागरण' के साथ एक विशेष बातचीत में अपने बेबाक अंदाज में अपनी और भाजपा की राजनीति के हर पहलू पर बातचीत की। भाजपा में उनकी उपेक्षा के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि 'पार्टी से न तो मेरी कोई मांग है, न अपेक्षा और न ही कोई आशा है।
मैं केंद्र में मंत्री नहीं बना तो मुझे इस पर भी कोई शिकवा नहीं है। मेरा सिनेमा छोड़ राजनीति आना मेरा अपना कमीटमेंट था। मैं आज भी अपने कमीटमेंट पर कायम हूं। क्योंकि मैंने कभी राजनीति को अपना पेशा नहीं बनाया। मेरा कमीटमेंट भाजपा और आरएसएस के साथ है। मैं तब से भाजपा के साथ जुड़ा हूं जब भाजपा संसद में केवल दो सदस्यों की पार्टी थी।
अगर पार्टी मुझे कोई जिम्मेदारी देना चाहेगी तो मैं उसे सहर्ष स्वीकार करूंगा। मंत्री से लेकर संतरी तक की जिम्मेदारी मंजूर है। उन्होंने यह भी कहा कि अटल जी की सरकार में मैंने तो केंद्रीय मंत्री के रूप में भी अच्छा काम किया था। लेकिन नरेंद्र मोदी की मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हूं। यह उनका विशेषाधिकार है। जिसे चाहें मंत्रिमंडल में रखें और जिसे चाहें न रखें।
कभी बिहार के भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट होने वाले शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि अब मैं बिहार के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में नहीं हूं। इस पद की रेस में कई लोग शामिल हैं। उन्होंने कुछ नाम भी गिनाए। इन नामों में सुशील कुमार मोदी से लेकर चंद्रमोहन राय, अश्विनी कुमार चौबे और गिरिराज सिंह भी शामिल थे।
साथ ही यह भी कहा कि बिहार में भाजपा को सत्ता में आने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। क्योंकि मैं अपने राजनीतिक दुश्मनों की शक्ति को भी कमतर नहीं आंकता। यहां भाजपा की लड़ाई बिहार की राजनीति के दो धुरंधरों लालू प्रसाद और नीतीश कुमार से है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि किसी भी मंच पर मेरी साख और धाक मेरी ही पार्टी के कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगता।
शायद यही कारण रहा होगा कि विगत 14 मार्च को जब मेरे ही संसदीय क्षेत्र पटना साहिब में भाजपा ने कार्यकर्ता समागम का आयोजन किया तो मुझे बुलाना भी मुनासिब नहीं समझा। मुझे तो पार्टी का यह फैसला भी मंजूर है। यह पूछने पर उनके धैर्य का बांध कब टूटेगा, तब उन्होंने प्रख्यात सिने अभिनेता अनुपम खेर की एक किताब का जिक्र किया और कहा 'अगर परिस्थितियां नहीं बदली तो 'कुछ भी हो सकता है।'