सूचनाओं के काले अक्षर पर लाल छींटे
डॉ. मुरलीधर जायसवाल ने सूचना के अधिकार(आरटीआइ) कानून का सहारा लिया और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की गड़बड़ी को उजागर किया
पटना( एसए शाद)। डॉ. मुरलीधर जायसवाल ने सूचना के अधिकार(आरटीआइ) कानून का सहारा लिया और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की गड़बड़ी को उजागर किया, लेकिन किसे मालूम था कि इसके लिए उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ेगी। 4 मार्च, 2012 को उनकी हत्या कर दी गई। मुंगेर के हवेली खड़गपुर थाने में नामजद प्राथमिकी दर्ज हुई, लेकिन पुलिस मुख्य आरोपी बब्लू मंडल को अबतक गिरफ्तार नहीं कर पाई। उल्टा बब्लू मंडल केस उठाने के लिए उनके परिवार को लगातार धमकी देता रहा। परिवार वालों ने बात नहीं मानी तो इस साल 13 अप्रैल को उनकी हत्या का एफआइआर दर्ज करने वाले शिव जायसवाल के चाचा प्रेमचंद की हत्या कर दी गई।
यह अकेली वारदात नहीं है, जहां सूचना मांगने पर किसी की हत्या की गई हो। पिछले चार साल में पांच और हत्याएं हुई हैं। अधिकांश मामलों में नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। लखीसराय में आरटीआइ एक्टिविस्ट रामविलास सिंह भी सूचना मांगने पर अपराधियों के हाथों 8 दिसंबर, 2011 को मारे गए थे। मुख्य आरोपी बमबम सिंह अभी भी खुला घूम रहा है। पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं कर पाई है। बेगूसराय के शशिधर मिश्र का मामला भी सामने है। उनकी हत्या करीब चार साल पूर्व फरवरी, 2010 में ही कर दी गई थी। इस मामले में भी मुख्य आरोपी कानून की गिरफ्त से बाहर है। नेशनल कैम्पेन फार पीपुल्स राइट टू इन्फारमेशन से जुड़े आरटीआइ एक्टिविस्ट शिवप्रकाश राय की मानें तो आरटीआइ के तहत सूचना मांगने वाले सहमे हुए हैं। पिछले दिनों इस संस्था के बैनर तले शिवप्रकाश राय, आशीष रंजन सहित अनेक आरटीआइ एक्टिविस्ट जब डीजीपी पीके ठाकुर से मिले तो उन्होंने संवेदनशीलता दिखाते हुए एडीजी (विधि व्यवस्था) आलोक राज को हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए आवश्यक निर्देश देते हुए 15 दिनों का समय मांगा।