दूर दिल्ली तक श्रीबाबू की कद्र
डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (श्रीबाबू) की शोहरत केवल इसलिए नहीं कि वे बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री थे। साहित्यिक अभिरुचियों और लेखन-शैली के लिए भी उनकी चर्चा होती है।
पटना। डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (श्रीबाबू) की शोहरत केवल इसलिए नहीं कि वे बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री थे। साहित्यिक अभिरुचियों और लेखन-शैली के लिए भी उनकी चर्चा होती है। सौभाग्य यह कि इस बार यह चर्चा बिहार से दूर दिल्ली में हो रही है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में श्रीबाबू के नाम से उनकी किताबों के लिए एक खंड बनेगा। कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने इसका एलान भी कर दिया है।
सियासी और सामाजिक सरोकार रखने वाले तमाम संगठन इस साल श्रीबाबू की जयंती समारोह का आयोजन कर रहे हैं। सोमवार को अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्मण महासंघ द्वारा नई दिल्ली में श्रीबाबू को स्मरण किया गया। महासंघ के अध्यक्ष मनीष कुमार शेखर के मुताबिक समारोह में मौजूद रामबहादुर राय ने घोषणा की कि श्रीबाबू के रचना-संसार का यथाशीघ्र संग्रह किया जाएगा और राष्ट्रीय कला केंद्र में उन्हें सुरक्षित कर दिया जाएगा।
बकौल राय, आजादी की लड़ाई के दौरान श्रीबाबू पहली पंक्ति के नेता थे। वे चाहते तो केंद्रीय राजनीति में सिरमौर होते, लेकिन उन्होंने बिहार को संवारने में अपनी ऊर्जा और उम्र खपा दी। भारतीय विश्वविद्यालय परिसंघ के अध्यक्ष डॉ. प्रियरंजन त्रिवेदी के मुताबिक बिहार में श्रीबाबू ने जो शैक्षणिक क्रांति शुरू की थी, उसी का परिणाम है कि आज भी बिहार बौद्धिकता के शिखर पर है।