कांग्रेस की तरह भाजपा भी पूरे देश पर करना चाहती है कब्जा : नीतीश कुमार
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को कहा कि जंगल राज की बात कह बिहार के लोगों को डराने वाले लोगों को वह बहस की चुनौती देते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो या फिर राज्य सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़े के साथ आ जाएं।
पटना। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को कहा कि जंगल राज की बात कह बिहार के लोगों को डराने वाले लोगों को वह बहस की चुनौती देते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो या फिर राज्य सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़े के साथ आ जाएं।
जंगलराज न आज है और न कल होगा। भाजपा पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि चिकेन हार्टेड (डरपोक) लोग क्या जानें अपराध को कंट्रोल करना। इसके लिए कलेजा चाहिए। जंगलराज की बात कहना यह भी साबित करता है कि आप किस तरह की सामाजिक सोच के पक्षधर हैं। इस संदर्भ में सवालिया लहजे में उन्होंने कहा कि जिस दिन विकास मुद्दा हो जाएगा उस दिन भाजपा रहेगी क्या? एक निजी चैनल द्वारा राजधानी में चुनाव पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने यह बात कही।
मुख्यमंत्री से जब यह पूछा गया कि आप लोहिया की विचारधारा वाले लोग हैं तो फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि कांग्रेस का समर्थन लेना पड़ा? क्या आपको अपनी विचारधारा से समझौता करना पड़ा? मुख्यमंत्री ने कहा कि वोटों का बिखराव न हो इसे ध्यान में रख समझौता किया है।
भारतीय राजनीति में इसे मजबूरी नहीं कहा जाता है। यह टैक्टिकल एलायंस है। पुराने संदर्भ को लेकर इसकी तुलना नहीं हो सकती है। कांग्रेस आज कहां है? केंद्रबिंदु में तो आज भाजपा है। हमलोगों ने जो निर्णय किया है वह सुविचारित है। महागठबंधन जनता के बीच है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने काम छोड़कर कुछ किया ही नहीं है। इसके अलावा कोई और विशेषज्ञता भी नहीं है हमारी। अगर लोग वोट नहीं देंगे तो आराम करेंगे। अगर लोगों को झांसे में आना है तो फिर हमें क्या लेना-देना है? सोच इस प्रकार की हो जिसमें अपना स्वार्थ नहीं हो। हमें आप लाख उत्तेजित करें हम शालीनता से ही जवाब देंगे। अब बार-बार आप लालू प्रसाद को कुरेदेंगे तो वह चुप बैठेंगे क्या? जवाब देने की तो उनकी अपनी शैली है।
बिहार के चुनाव के हाइप पर मुख्यमंत्री से जब सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि केंद्र की सरकार ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ जीवन-मरण का प्रश्न बना लिया है। कोई ऐसा दिन नहीं बीतता जब केंद्र के कोई न कोई मंत्री यहां नहीं आते हैं।
सोच यह है कि दिल्ली मिल गयी है तो सारे राज्य मिल जाएं। इसपर चल रहे हैं कि जग जीत लेंगे। इनका पैतृक संगठन आरएसएस है और उसका आजादी के मूल्यों से कोई वास्ता नहीं। 2014 के आते-आते भाजपा का यह स्वरूप हो गया।
अटल जी के एप्रोच में उदारता थी। राजधर्म के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अलग किस्म की थी। दरअसल दिल्ली विधानसभा चुनाव की हार की बौखलाहट दिखती है भाजपा में। किसी भी तरह से जीतना चाहते हैं बिहार। प्रधानमंत्री के भाषण को सुनिए।
जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल प्रधानमंत्री करते हैं उसके बारे में मैं तो सोच भी नहीं सकता। विकास पर कोई पेपर आया है भाजपा का। मैं तो अभी दूसरे काम में हूं। बखिया उधेड़ दूंगा उस कागज की। विकास पर बहस हो तो मैं आमंत्रित करता हूं। हमारा नजरिया हम रखेंगे, आप अपना रखिए। क्या यह फेडरल सिस्टम है, जो कह रहे कि जैसी दिल्ली वैसा राज्य। कोई सीएम का प्रत्याशी तो दिया ही नहीं। भाजपा में हिम्मत नहीं है कि सामना करे।