यहां बुलंदी पाती रही है दलित राजनीति
बिहार में दलित राजनीति खूब बुलंदी पाती रही है। इस सिलसिले में जगलाल चौधरी, महावीर चौधरी, जगजीवन राम, भोला पासवान शास्त्री, भोला राउत, चन्द्रिका राम, भोला मांझी, नयन तारा, महावीर दास, जगदेव प्रसाद, रामसुन्दर दास और जीतन राम मांझी सरीखे दलित नेताओं का उल्लेख किया जा सकता है।
पटना [दीनानाथ साहनी]। बिहार में दलित राजनीति खूब बुलंदी पाती रही है। इस सिलसिले में जगलाल चौधरी, महावीर चौधरी, जगजीवन राम, भोला पासवान शास्त्री, भोला राउत, चन्द्रिका राम, भोला मांझी, नयन तारा, महावीर दास, जगदेव प्रसाद, रामसुन्दर दास और जीतन राम मांझी सरीखे दलित नेताओं का उल्लेख किया जा सकता है।
1937 में पहली बिहार विधानसभा में अनुसूचित जाति के लिए 15 सीटें आरक्षित की गईं। इसमें से 14 सीटों पर कांग्रेस के दलित प्रत्याशी जीते। उनमें जगलाल चौधरी, जगजीवन राम, डॉ.रघुनंदन प्रसाद, राम प्रसाद, सुखारी राम, राम बसावन राम, जीतू राम, कारू राम, शिवनंदन राम, रामबरस दास और बाल गोविंद भगत प्रमुख थे।
22 जुलाई 1937 में जब श्रीकृष्ण सिंह मंत्रिमंडल ने शपथ ली तो पहले दलित नेता जगलाल चौधरी एवं दूसरे दलित नेता जगजीवन राम को संसदीय सचिव बनाया गया। इस समय दलितों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व पिछड़ों की तुलना में बेहतर था।
जगलाल चौधरी और जगजीवन राम बड़े दलित नेता के रूप में उभरे। इन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम भी किया। जगजीवन राम बिहार में ताउम्र दलित वर्ग के मुख्य संगठक और सर्वमान्य नेता बने रहे। 1936 में वे विधान परिषद और फिर 1937 व 1946 में बिहार विधानसभा के सदस्य बने।
फिर स्वतंत्र भारत के नेहरू मंत्रिमंडल में वे सबसे कम उम्र (38 वर्ष) के मंत्री बने। वे लंबे समय तक केंद्र में मंत्री रहे। जनता सरकार में उपप्रधानमंत्री रहे राम ने दलितों की राजनीति एवं सामाजिक हैसियत स्थापित की।
1967 से अभी तक बिहार में भोला पासवान शास्त्री, राम सुन्दर दास और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला लेकिन ये लोग दलित मुख्यमंत्री के रूप में अपनी विशिष्ट छाप नहीं छोड़ सके। वहीं रामविलास पासवान केन्द्र में कई बार मंत्री बने और अभी भी केन्द्रीय मंत्री हैं। वे भी खुद को दलित नेता के रूप में स्थापित करने का लगातार प्रयास करते रहे हैं।
उधर बिहार विधानसभा चुनाव की आहट होते ही दलित वोटों को लेकर विभिन्न दलों में खींचतान शुरू हो गयी है। जीतन राम मांझी नये दलित नेता के रूप में प्रोजेक्ट किए जा रहे हैं।
1915 में नवगठित बिहार और उड़ीसा प्रदेश की पहली विधान परिषद में खान बहादुर सैयद फखरुद्दीन ने दलितों की समस्या को सुधारने का मसला उठाया था। इसे दलित वर्ग को राजनीति व समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का शुरुआती प्रयास माना जाता है।
नवम्बर,1920 में द्वितीय विधान परिषद में विश्वनाथ कर दलित वर्ग के प्रतिनिधि के तौर पर नामांकित हुए। उन्होंने बिहार और उड़ीसा में दलित वर्गों की स्थिति में सुधार का मुद्दा उठाया। प्रदेश सरकार की ओर से जवाब देते हुए तत्कालीन सचिव मि. हैमंड ने प्रदेश की आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए इस मुद्दे से पल्ला झाड़ लिया। (संदर्भ-बिहार एंड उड़ीसा लेजिस्लेटिव काउंसिल, क्वेश्चन्स एंड आन्सर्स, नवम्बर 1921)
दलित मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल
* 1968, 1969 एवं 1971 में क्रमश: तीन महीने, बारह दिन तथा सात महीने के लिए भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री रहे।
* 22 अप्रैल 1979 से 17 फरवरी 1980 तक राम सुन्दर दास ने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली।
* 20 मई 2014 से 22 फरवरी 2015 तक जीतन राम मांझी सीएम रहे।
कुछ ऐतिहासिक तथ्य-
* बिहार एवं उड़ीसा विधान परिषद के आम चुनाव में चंपारण से एक दलित उम्मीदवार रामलाल राम खड़े हुए थे। विधान परिषद का चुनाव लडऩे वाले वे पहले दलित थे। चुनाव में उन्होंने कुल ग्यारह रुपये चार आने खर्च किये थे। वे चुनाव जीत नहीं सके। तब एक दलित का चुनाव लडऩा ही बड़ी बात थी। (संदर्भ-बिहार एंड उड़ीसा लेजिस्लेटिव काउंसिल,18 मार्च 1924)
* 1930 में विधान परिषद में पहली बार बबुए लाल को मनोनीत किया गया। वे पासी जाति से थे और स्नातक थे।
* 10 अप्रैल 1937 को हरिजन सेवक संघ की मीटिंग सदाकत आश्रम में हुई थी। इसकी अध्यक्षता राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह ने की थी। सम्मेलन में डॉ.राजेन्द्र प्रसाद सिंह, जगलाल चौधरी, जगजीवन राम, ब्रजकिशोर प्रसाद, जगत नारायण लाल आदि नेता शामिल हुए थे।
* 12 जुलाई 1937 को गोपालगंज में बिहार डिप्रेस्ड क्लासेस का प्रथम सम्मेलन हुआ था। इसकी अध्यक्षता जगजीवन राम ने की थी। तब सम्मेलन में डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह एवं अनुग्रह नारायण सिंह ने दलितों के लिए अलग संगठन की आवश्यकता पर बल दिया था।
(संदर्भ-दि डिप्रेस्ड क्लासेस : ए क्रोनोलॉजिकल डॉक्यूमेंटेशन)