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जातिप्रथा खत्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह को दें प्रोत्साहन : जीतनराम मांझी

पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा कि हम सब एक ही माता- पिता के संतान हैं। ईश्वर के लिए सब समान हैं। उन्‍होंने कहा कि जाति का भूत खत्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह को प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 20 Aug 2015 04:09 PM (IST)Updated: Thu, 20 Aug 2015 07:40 PM (IST)
जातिप्रथा खत्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह को दें प्रोत्साहन : जीतनराम मांझी

पटना। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा कि हम सब एक ही माता- पिता के संतान हैं। ईश्वर के लिए सब समान हैं। कहा भी गया है कि जात- पात ने पूछे कोई हरि को जपे वही हरि के भए। उन्होंने कहा कि जाति का भूत खत्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करना होगा।

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दैनिक जागरण द्वारा गुरुवार को जागरण फोरम के तहत आयोजित 'लोकतंत्र... सिर्फ राजनीति या जन भागीदारी' कार्यक्रम में 'जाति बनाम विकास की राजनीति' विषय पर मांझी ने कहा कि अतीत में चालाक लोगों ने जाति का पासा फेंका होगा। आज जाति के विकृति रूप से सब लोग आक्रांत हैं। जबतक जाति स्वरूप राक्षस पनपते रहेंगे तब तक विकास संभव नहीं है।

कहा कि जाति विकास के राह की सबसे बड़ी बाधा है। जाति का नाम लेकर विनाश की ओर ले जाया जा रहा है। जाति का भूत मिटाए बगैर विकास की रफ्तार तेज नहीं की जा सकती है। जाति का भूत को खत्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित करना होगा।

उन्होंने कहा कि अर्थ युग में अर्थ की ही पूछ होती है। क्या गरीब पिता अपनी विदुषी पुत्री की शादी अमीर घर में करा सकता है? विवाह रूप और रंग नहीं बल्कि पैसा पर हो रहा है। इसलिए जाति सिर्फ अमीरी और गरीबी की ही है।

उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में जीने के बाद भी आज समाज के बड़े तबके के पास न तन ढकने को कपड़ा है न रहने को घर और न खाने को अनाज है। इसकी अनदेखी करके हम लोग मनुष्य होने के बाद भी जानवर की तरह काम कर रहे हैं।

इनको देखकर क्या कभी हमारा सिर शर्म से झुकता है। क्या हम इनकी मेधा को मौका नहीं दे सकते हैं। भले ही हमलोग चांद और मंगल पर चले जाए लेकिन नैतिकता अंधकार में जा रहा है। अगर इसे नहीं पलटे तो विकास संभव नहीं है।

क्या गरीबों को आजादी का सही लाभ मिल रहा है। राजनीतिक समाज नहीं स्वार्थ या परिवार की बात कर रहे हैं। वे विकास का नारा दे रहे हैं, वास्तविकता पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। गरीबों के बच्चे को आगे बढऩे का मौका नहीं मिल रहा है। आरक्षण की बात कहकर उनके मुंह बंद कर दिए जा रहे हैं। समान स्कूली शिक्षा का अक्षरश : पालने करके अमीरी और गरीबी की खाई को पाटी जा सकती है।

मांझी ने कहा, फिलहाल, मुझको उम्मीद के बजाए अंधकार और निराशा ही दिखाई दे रही है। विकसित लोग बहुत ही चालाकी से गरीब को और ज्यादा गरीब बना रहे है।

कहा कि सड़क और पुल का निर्माण ही विकास का पैमाना नहीं होना चाहिए बल्कि समेकित विकास होना चाहिए। जाति के नाम पर भेदभाव करना बड़ा अपराध है। जैसे सिर्फ अपराध करने वाला ही नहीं बल्कि अपराध देखने वाला भी अपराधी होता है। उसी प्रकार से मानवता से मुंह मोडऩे वाले मनुष्य कहलाने के लायक नहीं हैं।


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