Move to Jagran APP

स्वाभिमान के नाम पर सियासी जुटान का बना इतिहास

पटना के गांधी मैदान में कई बड़ी रैलियों का इतिहास दर्ज है। 1942 की जय प्रकाश नारायण की अभिनंदन रैली से लेकर 30 अगस्त 2015 की महागठबंधन की स्वाभिमान रैली तक। रविवार की स्‍वाभिमान रैली भी ऐसी ही बड़ी रैली थी।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2015 07:34 AM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2015 07:53 AM (IST)

पटना [अरविंद शर्मा]। पटना के बीच में 62 एकड़ में फैला गांधी मैदान। इसके पन्नों में कई बड़ी रैलियों का इतिहास दर्ज है। 1942 की जय प्रकाश नारायण की अभिनंदन रैली से लेकर 30 अगस्त 2015 की महागठबंधन की स्वाभिमान रैली तक।

loksabha election banner

रविवार की रैली भी तीन मायनों में अहम थी। पहला, 1975 की जेपी की रैली के बाद शायद यह पहला मौका था जब इतने बड़े पैमाने पर सियासी जमावड़ा हुआ। एक ही मकसद से चार बड़े दलों के शीर्ष नेता जुटे और ताकत का प्रदर्शन किया।

दूसरा, वर्षों बाद पर सोनिया गांधी, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार एक मंच पर आए। सबसे बड़ी बात यह कि भले ही 90 के दशक का दौर अब नहीं रहा, लेकिन लालू ने बदले दौर में भी अपनी ताकत का अहसास कराया।

अहम फैक्टर यह भी कि महज दो दिन बाद भागलपुर में भाजपा की परिवर्तन रैली भी प्रस्तावित है। भले ही दोनों रैलियों में दो दिन और मीलों की दूरी का फर्क है, लेकिन एक-दूसरे पर इनके असर से इनकार नहीं किया जा सकता।

चुनावी मोड पर बैठे बिहार में रैली के पहले ही लालू ने दावा किया था कि 30 अगस्त को पटना को भीड़ से पाट देंगे। स्वाभिमान रैली की सफलता का असली आकलन तो नतीजे आने के बाद ही किया जाएगा, लेकिन सियासी ताकत का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है।

मैदान में भीड़ और उसमें जबर्दस्त उत्साह था। बाहर में भी सड़कों पर रेला। रक्षाबंधन के महज एक दिन बाद भी ऐसी भीड़ और तेवर देखकर समझा जा सकता है कि ये पकड़कर लाए गए लोग नहीं थे।

रैली ने यह भी साबित कर दिया कि भीड़ जुटाने और उसे थामकर रखने वाले नेताओं की कतार में लालू आज भी किसी से कम नहीं हैं। लालू ने यह कहकर भी रैली को महत्वपूर्ण बना दिया था कि वह दिल्ली और अमेरिका को भी पटना की रैली दिखाना चाहते हैं। बराक ओबामा भी देखेंगे कि लालू में अभी भी कितना दम है।

लगभग 21 साल बाद लालू और नीतीश का ताल से ताल मिलाना भी सियासत की प्रभावी घटना साबित होने वाली है। 1994 में लालू से अलगाव के बाद नीतीश कभी इतने बड़े मंच पर उनके साथ नहीं दिखे।

कुर्मी चेतना रैली के बाद वे भाजपा की राह पर चल निकले थे। जाहिर है, सोनिया गांधी से भी नीतीश की कुंडली अलग थी। इस बार तीनों एक साथ और एक स्वर में बोल रहे थे। समाजवादी पार्टी के शिवपाल यादव भी मुलायम सिंह के प्रतिनिधि के तौर पर मौजूद थे। सोनिया की उपस्थिति में शरद यादव का समाजवाद भी हिलोरें ले रहा था। सबका जुटान सियासी इतिहास का गवाह बनेगा।

बड़ी रैलियों का गवाह गांधी मैदान

गांधी मैदान राजनीतिक और सामाजिक कई बड़ी रैलियों का गवाह रहा है। यहां जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, वीपी सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, नरेंद्र मोदी, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जैसे नेता लाखों की भीड़ को संबोधित कर चुके हैं।

अब तक की बड़ी रैलियां

  • अक्टूबर 2013 में प्रधानमंत्री के भाजपा उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली।
  • 2012 में बिहार को विशेष राच्य का दर्जा दिलाने के लिए नीतीश की रैली।
  • 2010 में उपेन्द्र कुशवाहा की नवनिर्माण रैली।
  • 2007 में लालू प्रसाद की चेतावनी रैली।
  • 2004 में नीतीश कुमार की बिहार बचाओ रैली।
  • 2004 में लालू प्रसाद की लाठी रैली।
  • 1997 में लालू प्रसाद का गरीब महारैला।
  • 1996 में लालू प्रसाद का गरीब महारैला।
  • 1995 में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की गरीब रैली।
  • 1994 मेंनीतीश की कुर्मी चेतना महारैली।
  • 1990 में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की एकजुटता रैली।
  • जनवरी 1977 मेंआपातकाल खत्म होने के बाद जेपी की रैली में भारी भीड़ हुई थी।
  • जून 1975 में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का बिगुल इसी मैदान से फूंका था।
  • 1967 में कांग्रेस के खिलाफ लहर पैदा करने के लिए राममनोहर लोहिया की चुनावी रैली
  • 1942 में आजादी की लड़ाई के दौरान हजारीबाग जेल से फरार होने के बाद जेपी की अभिनंदन रैली

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.