Move to Jagran APP

हिन्दी दिवस विशेष : राजनीति में जिंदा है 'हिन्दी'

जब दुनिया ग्लोबलाइजेशन की ओर बढऩे लगी, उस दौरान हिन्दी के भविष्य पर ढेर सारे विद्वानों ने सवाल खड़े किए। बदलते दौर के साथ राजनीति के माथे पर हिन्दी बिंदी की तरह चमक बिखरेती रही है। हिन्दी के सेतु पर सवार होकर 'राजनीति' आम लोगों तक पहुंचती रही।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2015 07:29 AM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2015 07:40 AM (IST)
हिन्दी दिवस विशेष : राजनीति में जिंदा है 'हिन्दी'

पटना। जब दुनिया ग्लोबलाइजेशन की ओर बढऩे लगी, जब हम 'ग्लोबल विलेज' में समाने लगे, उस दौरान हिन्दी के भविष्य पर ढेर सारे विद्वानों ने सवाल खड़े किए। बदलते दौर के साथ राजनीति के माथे पर हिन्दी बिंदी की तरह चमक बिखरेती रही है।

loksabha election banner

हिन्दी के सेतु पर सवार होकर 'राजनीति' आम लोगों तक पहुंचती रही। हिन्दी भाषा के सहारे राजनीतिक दल व राजनेता अपनी बात जनता तक पहुंचा रहे हैं। बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी चरम पर है।

सभी राजनीतिक दल हिन्दी की लहर पर सवार होकर जनता के दिलों तक अपनी बात पहुंचाने में लगे हैं। आकर्षक हिन्दी नारों के सहारे सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी ब्रांडिंग करने में जुट गई हैं। साफ है कि राजनीति में हिन्दी का बोलबाला सिर चढ़कर बोल रहा है।

पिछले लोस चुनाव में कामयाब रहा यह फैक्टर

पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के लिए हिन्दी फैक्टर बेहद कामयाब रहा है। 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' नारे के सहारे बीजेपी आम लोगों के बीच ब्रांड 'मोदी' को लोकप्रिय बनाने में जुटी थी। फिर इसके बाद नारा दिया गया 'अबकी बार मोदी सरकार'।

पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाने में ये नारे बेहद कामयाब रहे। बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने भी यह हथकंडा अपनाया। आम लोगों में जोश भरने वाले हिन्दी नारों के जरिए ने जदयू ने अपनी ब्रांडिंग शुरू की।

विरोधी दल को काउंटर करने के लिए पोस्टर व बैनर पर आकर्षक नारे दिखने लगे। 'झांसे में नहीं आएंगे, नीतीश को जीताएंगे', 'बहुत हुआ जुमलों का वार, फिर एक बार नीतीश कुमार' आदि नारों के जरिए जदयू मुख्य विरोधी दल बीजेपी और नरेंद्र मोदी को घेरने में लग गई।

जुमलों का नहले पर दहला

चुनावी समर में सबसे पहले जदयू ने पोस्टर वार शुरू किया। नारों के जरिए केंद्र में सत्तासीन बीजेपी सरकार पर जदयू हमलावर हुई। बीजेपी पर ताबड़तोड़ हमला किया। जवाब में बीजेपी ने भी उसी अंदाज में प्रहार किया। बीजेपी ने नारा दिया- 'अपराध, भ्रष्टाचार और अहंकार, क्या इस गठबंधन से बढ़ेगा बिहार'।

वन टू वन नारों का वार मई के महीने से जारी है। जब बीजेपी पोस्टर वार में उतरी तो सत्ताधारी दल ने फिर नारा दिया 'आगे बढ़ता रहे बिहार, फिर एक बार नीतीश कुमार'। बीजेपी ने जवाबी हमला किया 'कहां बढ़ा बिहार, क्यों फिर नीतीश कुमार'। पोस्टर वार के बीच जदयू ने कार्यकर्ताओं व आम लोगों को रिझाने के लिए गीत लांच किया 'बिहार में बहार हो, फिर नीतीशे कुमार हो'। यह गीत आम लोगों के बीच लोकप्रिय हो ही रहा था कि बीजेपी ने फिर नारों के जरिए चुटकी ली।

भाजपा ने पलटवार किया 'दवाई के बिना मरते बीमार हैं, हां भईया बिहार में बहार है', कल तक के जानी दुश्मन अब सत्ता के यार हैं, हां भईया बिहार में बहार है'।

...वो कहतें हैं जंगलराज

अभी मैदान में जदयू व भाजपा एक-दूसरे पर नारों के बाण छोड़ रहे थे। अब राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी मैदान में कूच किया। हालांकि चुनावी रण में राजद थोड़ी देर से कूदा। इसने भी अपने हाथ में जुमलों का 'तीर' थामा। बीजेपी ने राजद सुप्रीमो के लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल को जंगलराज कहा तो राजद ने जवाब दिया 'जब गरीबों को दिया आवाज, वो कहतें हैं जंगलराज'।

युवाओं को पार्टी के लाइन से जोडऩे के लिए 'बोलेगा युवा-बढ़ेगा युवा,बढ़ेगा युवा-बदलेगा बिहार' कहते नजर आते हैं तो 'अपने चिराग को बिहार के हर घर का चिराग' बनाने का दावा करता हुआ रामविलास पासवान का पोस्टर नजर आता है। बिहारी स्वाभिमान को आहत देखकर कांग्रेस भी पोस्टर वार में शामिल होती दिख रही है- 'जग-जाहिर बिहारी स्वाभिमान, नहीं सहेंगे खून का अपमान'।

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

भारतीय राजनीति में पोस्टर वार कोई नहीं बात नहीं। 1974 में जब बिहार में जेपी का आंदोलन शुरू हुआ तो उसने जन-जन को झकझोर दिया। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति का नारा बनीं 'सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास तुम्हारा है, ये नखत अमा के बुझते हैं, सारा आकाश तुम्हारा है।

उनकी ही कविता थी- दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो/ सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। उनकी कविता की ये पंक्तियां इमरजेंसी के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बनी। उनका नारे की तरह इस्तेमाल हुआ।

इमरजेंसी और संजय गांधी के समय यह नारे खूब चले थे- जमीन गई चकबंदी मे, मकान गया हदबंदी में, द्वार खड़ी औरत चिल्लाये, मेरा मर्द गया नसबंदी में। हर दौर में सीपीआइ का यह नारा भी खूब चर्चा में रहा 'हंसुआ बाल, रहे ख्याल'।

राजनेता भी हिन्दी से प्रभावित

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गैर हिन्दी भाषी क्षेत्र से आते हैं, लेकिन वे भी हिन्दी की अद्भूत संप्रेषण क्षमता से प्रभावित हैं। भोपाल में चल रहे अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मलेन में उन्होंने कहा कि हिन्दी की वजह से वे अधिक से अधिक लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे।

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी हिन्दी के अच्छे जानकार माने जाते थे। उनके ओजस्वी भाषणों को सुनने के लिए अप्रत्याशित भीड़ जुटती थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के हिन्दी प्रेम से हम सभी वाकिफ हैं। वे न ही सिर्फ हिन्दी के चर्चित वक्ता थे, बल्कि जाने-माने कवि भी थे। उनकी कविताओं में देशप्रेम और देश की मिट्टी की सुगंध साफ महसूस की जा सकती है।

स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया तो देश की संपूर्ण कार्यप्रणाली को हिन्दी में करने के पक्ष में थे। मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने हिन्दी को हिन्दुस्तान का प्रतीक बताते हुए यहां तक कहा कि ' हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दुस्तां हमारा'।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.