पीएमसीएच के कर्मियों की मिलीभगत से बेच दी जाती थी सरकारी दवा
मरीज दवा के अभाव में दम तोड़ते रहे दम।
पटना। मरीज दवा के अभाव में दम तोड़ते रहे और सरकारी दवाओं की खेप नकली दवा कारोबारियों तक पहुंचाई जाती रही। करोड़ों के इस खेल का खुलासा कई बार गोविंद मित्रा रोड में छापेमारी के दौरान हुआ मगर पुलिस से लेकर औषधि नियंत्रण विभाग के अधिकारी तक खामोश रहे।
पिछले माह नीरज की ड्रग एजेंसी से पीएमसीएच में सप्लाई की जाने वाली सरकारी इंजेक्शन के सात सौ वायल बरामद हुए थे। इसकी सप्लाई खुद पीएमसीएच के कर्मी नीरज को करते थे। बावजूद नीरज से सांठगांठ करने वाले कर्मी या चिकित्सक कौन हैं, इसका खुलासा नहीं हो सका है। नीरज को बचाने के लिए रिमांड का आवेदन भी कोर्ट में देरी से दिया गया।
पीएमसीएच में होता है दवाओं का खेल
28 अप्रैल को नीरज की ड्रग एजेंसी से बरामद दवाओं की जब विभाग ने जांच की तो मेरोपेनम इंजेक्शन मिली। इस इंजेक्शन की सप्लाई टेंडर के जरिए पीएमसीएच में की गई थी। बैच नंबर से मिलान के बाद सात जून को ड्रग विभाग की टीम पीएमसीएच में पहुंची थी। जांच में पता चला कि पीएमसीएच में यह दवा अप्रैल में ही खत्म हो चुकी है। मरीजों को दवा बाहर से खरीदनी पड़ रही है। जांच में यह बात भी उजागर हुई कि यहां जीवनरक्षक औषधि से संबंधित अभिलेखों का संधारण पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के प्रशासन के निर्देशानुसार परम्परागत तरीके से किया जाता रहा है। इसी वजह से बिहार सरकार द्वारा अस्पतालों में बंटने वाली नॉट फॉर सेल की दवाओं का दुरुपयोग होते रहा। ऐसा खुद ड्रग विभाग ने अपनी रिपोर्ट में दर्शाया है। मतलब साफ है कि पीएमसीएच में दवाएं तो मरीजों के नाम पर स्टोर से बाहर निकाली जाती थीं, लेकिन उसे बाहर बेच दिया जाता था।
नकली दवा कारोबार में शामिल सफेदपोश
वर्ष 2014 में जब श्री हनुमान एजेंसी में ड्रग विभाग की टीम ने छापेमारी की तब राज्य के अन्य अस्पतालों में सप्लाई की जाने वाली सरकारी दवा मिली। ड्रग विभाग के एक अधिकारी मानें तो इसी बीच ऊपर से दबाव बनने लगा। नतीजा, पहले दिन ही नीरज और उसके पिता नरेश पर कार्रवाई नहीं हो सकी। छापेमारी के बाद ड्रग विभाग ने संगीन धाराओं में नीरज, नरेश और धीरज के खिलाफ पीरबहोर थाने में केस दर्ज कराया लेकिन नीरज और उसके पिता को पुलिस छू भी नहीं पाई। इसी बीच नीरज और उसके परिवार को कोर्ट से राहत मिल गई। उल्टा ड्रग विभाग के उस अधिकारी पर ही दबाव बनाया गया जिसने छापेमारी की थी। इसके बाद से नीरज खुलेआम अप्रैल 2017 तक लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करता रहा और नकली दवा बेचता रहा।
सवालों के घेरे में पुलिस की कार्रवाई
28 अप्रैल को नीरज की गिरफ्तारी हुई। नीरज की एजेंसी पर पीएमसीएच में सप्लाई की जाने वाले सात सौ इंजेक्शन के वायल मिले। ड्रग विभाग ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा कि पीएमसीएच के आंतरिक प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि दोषियों की चिह्नित कर सख्त कार्रवाई करे। लेकिन, कार्रवाई कौन कहे, यहां तो ऐसे कर्मियों की पहचान भी नहीं कर सकी। उधर पुलिस भी कम नहीं। पीएमसीएच से कौन कर्मी सरकारी इंजेक्शन या सरकारी अन्य दवाओं की खेप नीरज तक पहुंचाता था इसकी जानकारी जुटाने के लिए पुलिस ने नीरज को रिमांड पर लेने के लिए समय पर आवेदन भी कोर्ट में नहीं दिया। नीरज का कनेक्शन किन कारोबारियों से है और सरकारी दवा कब खरीदी, कितने में खरीदी और उन दवाओं की री-पैकिंग कर किसे बेचता था इन सवालों का जवाब तक पुलिस नहीं जुटा सकी है। यह बात और है कि आइजी के निर्देश पर डीआइजी ने दवा मामले की जांच शुरू कर दी है।
नीरज के पिता ने रखी थी कारोबार की बुनियाद
जेल में बंद श्री हनुमान ड्रग एजेंसी का मालिक नीरज अपने पिता का कारोबार संभाल रहा था। नीरज के पिता नरेश नकली दवा कारोबार के बड़े खिलाड़ी रहे हैं। पिता ने नेटवर्क का फायदा उठाकर नीरज ने पिछले कई वर्षो में कूड़े के भाव में एक्सपायरी दवाएं खरीदने के बाद री-पैकिंग कर करोड़ों रुपये अर्जित कर लिए। ड्रग विभाग और पुलिस अब नीरज और रविशंकर के कनेक्शन के बारे में जानकारी जुटा रही है।
बयान :
दवा मामले में थाने में दर्ज केस में शिथिलता बरतने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। नीरज से पूछताछ की जाएगी। सरकारी दवाओं की खेप सप्लाई करने वाले एक भी दोषी नहीं बचेंगे।
राजेश कुमार, डीआइजी