कुछ दोस्त एेसे, जो हैं दोस्ती की मिसाल...जानिए कौन हैं वो?
हर रिश्ते में दोस्ती का रिश्ता सबसे खास रिश्ता होता है। अपने उसूलों और अपने दायरों से बाहर निकलकर जब दो लोग जुड़ते हैं और रिश्ते की परख हो जाती है तो यह रिश्ता मिसाल बन जाता है।
पटना [काजल]। हर रिश्ते से खास रिश्ता होता है दोस्ती का रिश्ता। इस रिश्ते की कोई ना अबतक व्याख्या कर सका ना ही कर सकेगा। वैज्ञानिकों की मानें तो यह डीएनए पर निर्भर करता है, लेकिन डीएनए मिले ना मिले दिल मिले दोस्त बने, यह बात चरितार्थ होती है।
वर्तमान में दोस्ती की कुछ मशहूर शख्सियतें
१.अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृ्ष्ण आडवाणी
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की दोस्ती एेसी है कि जिसने वर्तमान में बुलंदियों पर सवार भाजपा की बुनियाद ऐसे वक्त में खड़ी की, जब देश भर में कांग्रेस का एकछत्र राज था। अंग्रेजों के देश छोड़ने के बाद कांग्रेस ही देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी।
अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी ने अपने अथक परिश्रम से देश के सामने एक ऐसा राजनीतिक विकल्प रखा जिसका परिणाम आज सबके सामने है। 1951 में संघ की शाखा से होकर भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में शामिल हुए इन दो नेताओं की राजनीतिक यात्रा एक दूसरे के सहयोग से ही आगे बढ़ी।
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२. नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की दोस्ती वर्तमान राजनीति के जय और वीरू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का रिश्ता बहुत पुराना है। ये पिछले 30 साल से एक-दूसरे का साथ दे रहे हैं। इनकी मुलाकात अहमदाबाद में लगने वाली संघ की शाखाओं में हुई। हालांकि दोनों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में काफी अंतर था। मोदी गरीब परिवार से आते थे, वहीं अमित शाह संपन्न घराने के थे। जब दोनों युवा हुए तो दोनों ने अलग-अलग राह पकड़ ली।
लालू और नीतीश कुमार की दोस्ती
राजनीति अपनी जगह है और रिश्ते अपनी जगह। नीतीश कुमार और लालू यादव की अच्छी दोस्ती है। दोनो ने एक साथ छात्र राजनीति में कदम रखा और दोनोें ने साठ के दशक के आखिर में पटना में एक साथ अपने पैर जमाए। लालू राजनीति छोड़ पटना के बीएन कॉलेज से ग्रेजुएशन कर सरकारी नौकरी की तलाश में लग गए, वहीं नीतीश कुमार इंजीनियरिंग करके भी राजनीति में ही जमे रहे। दोनों को ही नरेंद्र सिंह का सहारा था।
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1973 में किस्मत ने पलटी खाई। लोहिया की जलाई मशाल बिहार में धधक रही थी और इसे कर्पूरी ठाकुर ने थाम रखा था। जेपी के पैर रखने के साथ ही इसे और मजबूती मिल गई। कांग्रेस की गफूर सरकार लटपटा रही थी। देश भर की आंच बिहार में भी पहुंच रही थी और इसके युवा चेहरे बने लालू। लालू दोस्तों समझाने पर दोबारा स्टूडेंट पॉलिटिक्स में लौट आए। उधर नीतीश इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स की यूनियन मजबूत करने में जुटे थे।
उसके बाद नीतीश किस्मत आजमाते रहे लेकिन हार मिली। सियासत छोड़ने का मन बनाने लगे, पर दोस्तों ने उन्हें मनाया। 1985 में उन्हें जीत मिली और विधायक बने। 87 में युवा लोकदल के अध्यक्ष बन गए और बाद में लालू के खास हो गए।
एेसे ही कुछ दोस्ती के रिश्ते हैं, जो इतिहास में दर्ज हैं-
जब कभी दोस्ती की बात आती है तो कृष्ण-सुदामा का जिक्र जरूर आता है। आए भी क्यों न.. ये प्रसंग शायद इसलिए ही याद किया जाता है कि दोस्ती में ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का भेद नहीं हुआ करता है।
कृष्ण-सुदामा की दोस्ती
कृष्ण धनवान और सुदामा गरीब ब्राह्मण, सुदामा उम्र में बड़े-कृष्ण छोटे - दोनों ने एक साथ सांदीपनी मुनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की। दोनोें शिक्षा ग्रहण के बाद जुदा हो गए। जब सुदामा को अपनी विपन्नता में कृष्ण की याद आई तब तक कृष्ण द्वारिकाधीश हो चुके थे। लेकिन जिस तरह कृष्ण ने सुदामा को अपनी बचपन की दोस्ती का सिला दिया, वो इस सच को रेखांकित करता है कि दोस्ती में कोई बंधन नहीं होता, कोई दीवार नहीं होती।
भगवान राम और सुग्रीव की दोस्ती
सीता जी का हरण हो जाने पर भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ उन्हें खोजते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर आए। जहां श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। मित्रता को निभाते हुए भगवान श्रीराम ने बाली का वध करके सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बनाया। ऐसे ही सुग्रीव ने भी अपनी मित्रता का परिचय देते हुए असंख्य वानरों को सीता माता की खोज में भेजा। सुग्रीव ने अपनी वानरी सेना के साथ शौर्य का प्रदर्शन कर एक सच्चे मित्र धर्म का पालन किया।
सीता माता और राक्षसी त्रिजटा की दोस्ती
रावण की अशोक वाटिका में सीता त्रिजटा से मिली। अपहरण के बाद जब सीता को रावण ने अशोक वाटिका में रखा था, तब सीता की सेवा के बहाने उनपर नजर रखने के लिए त्रिजटा को उनके साथ रखा था। धीरे-धीरे त्रिजटा और सीता के बीच मित्रता हो गई। उस दौरान कई बार सीता का मनोबल गिरा और हर बार वो इस तरह की निराशा से त्रिजटा के सहारे बाहर आ पाईं।
अकबर-बीरबल की दोस्ती
बादशाह अकबर और उनके मंत्री बीरबल की दोस्ती काफी मशहूर है। बीरबल मुग़ल बादशाह के नवरत्नों में सर्वाधिक लोकप्रिय दरबारी थे। अकबर उनपर बहुत भरोसा करते थे और वे बीरबल के गुणों के कायल थे। बीरबल भी अकबर को बहुत सम्मान दिया करते थे। बीरबल गरीब, पर बुद्धि और समझ से भरे हुए थे। अपनी बुद्धिमानी और समझदारी के कारण ही वे अकबर के खास रहे। जब वे अकबर बादशाह की सेवा में पहुँचे, तब अपनी वाक्-चातुरी और हँसोड़पन से बादशाही मजलिस के मुसाहिबों और मुख्य लोगों के चहेते बन गए।