समानता पर आधारित समाज था अंबेदकर का सपना : कंठ
- जयंती पर पटना विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में याद किए गए डॉ. भीम राव अंबेदकर जाग
- जयंती पर पटना विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में याद किए गए डॉ. भीम राव अंबेदकर
जागरण संवाददाता, पटना : अंबेदकर ने समाज में व्याप्त असमानता का दंश काफी झेला था। तकरीबन सारी उम्र उन्हें जाति व्यवस्था के व्यवहार को झेलना पड़ा था। फिर भी उनके मन में किसी व्यक्ति या समाज के प्रति प्रतिकार नहीं था। वे समाज की व्यवस्था बदलने के हिमायती थी। उनका सपना ऐसा समाज बनाना था, जहां सभी इंसान बराबर समझे जाते हों। जन्म से कोई महान और कोई अछूत न समझा जाए। ये बातें प्रो. विनय कुमार कंठ ने शुक्रवार को पटना विश्वविद्यालय के एकेडमिक काउंसिल हॉल में अंबेदकर जयंती के अवसर पर कहीं। वे समारोह के मुख्य वक्ता थे।
मुख्य अतिथि पटना के वाणिज्यकर आयुक्त वीरेंद्र प्रसाद ने कहा कि अंबेदकर के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं और हमें समाज में समानता लाने को प्रेरित करते हैं। जब भी इस देश में समानता की बात होगी, अंबेदकर का नाम जरूर लिया जाएगा। वीरेंद्र ने बाबा साहब के विचारों की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए जातीय व्यवस्था पर उनके उठाए सवालों पर भी बात की।
समारोह की अध्यक्षता पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुधीर कुमार श्रीवास्तव ने की। उन्होंने डॉ. अंबेदकर के योगदान की चर्चा की। कहा कि- अंबेदकर ने हमें विश्व का सबसे अनूठा संविधान दिया है। देश हमेशा उनका ऋणी रहेगा। मंच संचालन डॉ. अंबेदकर चेयर के चेयर प्रोफेसर डॉ. रमा शंकर आर्य ने किया। उन्होंने कहा कि अंबेदकर का सपना स्वस्थ, सुंदर, समृद्ध और समावेशी भारत के निर्माण का था। डॉ. रमेंद्र नाथ ने भी बाबा साहब के कृतित्व को श्रोताओं के बीच रखा।