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बिहार की बेटी USA में बनी सीनेटर; गीता के साथ ली शपथ, लगाया जय हिंद का नारा

बिहार की एक बेटी अमेरिका में सीनेटर बनी है। उसने गीता हाथ में लेकर पद की शपथ ली। अपने संबोघन में उसने महात्‍मा गांधी की चर्चा की तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी तारीफ की।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 24 Jan 2019 12:29 AM (IST)Updated: Thu, 24 Jan 2019 09:27 PM (IST)
बिहार की बेटी USA में बनी सीनेटर; गीता के साथ ली शपथ, लगाया जय हिंद का नारा
बिहार की बेटी USA में बनी सीनेटर; गीता के साथ ली शपथ, लगाया जय हिंद का नारा

पटना [जेएनएन]। बिहार के मुंगेर जिले की मूल निवासी मोना दास अमेरिका के वाशिंगटन राज्‍य में डेमोक्रेटिक पार्टी की सीनेटर बन गईं हैं। खास बात यह कि उन्होंने गीता हाथ में रखकर पद की शपथ ली तथा 'जय हिंद' और 'भारत माता की जय' के नारे भी लगाए।
इतना ही नहीं, उन्‍होंने महात्‍मा गांधी व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी तारीफ की। उन्‍होंने न केवल शपथग्रहण के लिए मकर संक्रांति का दिन चुना, बल्कि हिंदी में 'नमस्‍कार' व 'प्रणाम' कहते हुए मकर संक्रांति की शुभकामनाएं भी दीं।

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संबोधन में उठाया बे‍टियों की शिक्षा का मुद्दा
शपथ ग्रहण के अवसर पर अमेरिकी सीनेट में अपने संबोधन के दौरान मोना दास ने बेटियों की शिक्षा का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा एक लड़की को शिक्षित करने से पूरा परिवार तथा आने वाली पीढ़ियों को भी शिक्षित किया जा सकता है। उन्‍होंने कहा कि सीनेटर के रूप में वे लड़कियों को आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका निभाएंगी। मोना को सीनेट हाउसिंग स्टेबिलिटी एंड अफोर्डेबिलिटी कमेटी की वाइस चेयरमैन का कार्यभार दिया जाएगा।

मोना के सीनेटर बनने से पैतृक गांव में खुशी
मुंगेर जिले के दरियापुर गांव को अपनी इस बेटी पर नाज है। वे मुंगेर के पूर्व सिविल सर्जन डॉ. गिरिश्वर नारायण दास की पौत्री और अमेरिका के कैलिफोर्निया में इंजीनियर सुबोध दास की बेटी हैं। गांव के संजय यादव सहित कई अन्‍य कहते हैं कि मोना ने पूरी दुनिया में अपने जन्मस्थान दरियापुर गांव का नाम रोशन कर दिया है।
गांव में मोना दास के चचेरे दादा अशोक मोदी, अरुण कुमार मोदी, चचेरी दादी चमेली देवी, चाचा पप्पू चौरसिया, गोपाल चौरसिया, कन्हैया चौरसिया व मुकेश चौरसिया आदि भी मोना की उपलब्धि से गदगद हैं। पंचायत की  मुखिया रेनू देवी, मुखिया प्रतिनिधि रामविलास यादव आदि ने कहा कि अब बिटिया एक बार गांव आए जाए, यही तमन्ना है।

बिहार में ही हुआ था मोना दास का जन्‍म
मुंगेर के दरियापुर गांव में रह रहे मोना के चचेरे दादा ने  बताया कि मोना के पिता सुबोध दास व सगे चाचा अजय दास अमेरिका में इंजीनियर हैं। एक और चाचा विजय दास वहीं डॉक्टर हैं। दादी चमेली देवी ने बताया कि मोना का जन्म दरभंगा मेडिकल कॉलेज व अस्‍पताल (डीएमसीएच) में सन् 1971 में हुआ था। अमेरिका में रह रहे मोना के पिता उनके जन्म पर यहां आए थे। बाद में वे मोना व उसकी मां को साथ लेकर अमेरिका चले गए।
मोना के भाई सोम दास का जन्म अमेरिका में हुआ था। मोना लगभग 12-14 वर्ष की उम्र में दरियापुर गांव आईं थीं। उसके बाद से  वे यहां नहीं आ पाईं हैं। मोना एवं उनके छोटे भाई सोम की शादी अमेरिका में हुई है।
राजनीति में बढ़ते गए कदम, बन गई सीनेटर
बिहार से अमेरिका पहुंची मोना ने अमेरिका के सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री ली। आगे उन्‍होंने पिंचोट विवि से प्रबंधन में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। लेकिन जन सरोकार व जनसेवा में अत्यधिक रुचि रहने के कारण वे प्रबंधन से अधिक राजनीति में आगे बढ़ती चली गईं। राजनीति की राह आसान ताे नहीं रही, लेकिन जनसेवा के बल पर जनसमर्थन बढ़ता गया। साथ ही बढ़ता गया हौसला। परिणाम भी समाने है। वे अब सीनेटर बन गईं हैं।
जड़ों से जुड़े हैं पिता, दो साल पहले आए थे गांव
मोना की दादी चमेली देवी ने बताया कि दो वर्ष पूर्व सुबोध दास एक शादी समारोह में शामिल होने दरियापुर गांव आए थे। वे अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं। पति डॉ. जीएन दास भी वहीं रह रहे हैं। दूरभाष पर पति, सुबोध, अन्य पुत्रों व मोना से बातचीत होती रहती है। मोना के पिता सुबोध दास ने ही बेटी के सीनेट सदस्य चुने जाने की सूचना दी थी।

पैतृक गांव आने का बनाया प्‍लान
मोना दास ने भी पैतृक गांव आने का प्‍लान बनाया है। कहतीं हैं, ''मुझे अपने पैतृक गांव जाने की बहुत इच्छा है और मैं बिहार के साथ-साथ देश के सभी हिस्सों में घूमना चाहती हूं। भारत मेरा मूल देश है और मुझे अपने देश पर गर्व है।''
मुंगेर के सिविल सर्जन रहे दादा, गांव में बनवाया स्‍कूल
मोना के दादा डॉ. जीएन दास दरभंगा, भागलपुर और गोपालगंज में सिविल सर्जन पद पर सेवा दे चुके हैं। वे गोपालगंज से सेवानिवृति के बाद कुछ वर्षों तक  अपने गांव दरियापुर में रहे। उसके बाद वे बेटे के पास अमेरिका चले गए। मोना के दादा डॉ. जीएन दास के पास दरियापुर गांव में लगभग 60 बीघा खेती योग्य जमीन थी। गांव में एक बगीचा भी है।

इसी बगीचे  के  समीप  उन्होंने अपने नाम से उच्च विद्यालय खुलवाया, जिसमें दरियापुर सहित  आसपास के  आधे दर्जन गांवों के  बच्चे पठन-पाठन करने आते थे।  डॉक्टर  दास स्वयं इस विद्यालय की कड़ी निगरानी रखते थे, लेकिन धीरे-धीरे विद्यालयों में छात्र-छात्राओं की संख्या काफी कम हो गई। इसके बाद विद्यालय भवन में बच्चों का स्कूल खोल दिया गया।


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